Glaucoma : एक खतरनाक और मूक बीमारी
ग्लूकोमा को “दृष्टि का मूक चोर” कहा जाता है क्योंकि यह बीमारी अक्सर बिना किसी लक्षण के बढ़ती है। इसकी वजह से आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होती जाती है, और अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए, तो यह स्थायी अंधेपन का कारण बन सकता है। ग्लूकोमा दुनिया में स्थायी अंधेपन का सबसे बड़ा कारण है, और इसके लिए किसी विशेष प्रकार के लक्षणों का दिखाई न देना इसे और भी खतरनाक बना देता है।Glaucoma : 40 साल के ऊपर के लोग क्यों हैं ज्यादा प्रभावित?
ग्लूकोमा का खतरा खासकर उन लोगों को अधिक है जिनकी उम्र 40 साल या उससे अधिक है। डॉक्टरों का कहना है कि इस उम्र के बाद आंखों की जांच हर दो साल में एक बार करानी चाहिए, खासकर अगर व्यक्ति को किसी प्रकार के लक्षण न महसूस हों। यह बीमारी शुरू में बिना किसी लक्षण के बढ़ती रहती है, जिससे उसका पता देर से चलता है।Glaucoma : जोखिम में रहने वाले लोग
ग्लूकोमा का खतरा कुछ खास लोगों को ज्यादा हो सकता है। इनमें वे लोग शामिल हैं जो मधुमेह, उच्च रक्तचाप या जिनके परिवार में कोई सदस्य पहले से ही ग्लूकोमा से पीड़ित हो। इसके अतिरिक्त, वे लोग जो स्टेरॉयड का उपयोग करते हैं, जैसे कि क्रीम, आई ड्रॉप, टैबलेट या इन्हेलर, उन्हें भी इस बीमारी का खतरा ज्यादा होता है। जिनकी आंखों में चोट लगी हो, उन लोगों में भी ग्लूकोमा विकसित होने का जोखिम बढ़ सकता है।भारत में ग्लूकोमा की बढ़ती समस्या
भारत में ग्लूकोमा के कारण अंधेपन की समस्या बढ़ रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 90 प्रतिशत मामलों में बीमारी का पता नहीं चलता, जिससे समय पर इलाज नहीं हो पाता और अंधेपन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जागरूकता की कमी और समय पर पहचान न होने के कारण यह समस्या और गंभीर होती जा रही है।ग्लूकोमा से बचाव के उपाय Ways to prevent glaucoma
ग्लूकोमा से बचाव के लिए सबसे प्रभावी तरीका है नियमित आंखों की जांच। जो लोग मधुमेह, उच्च रक्तचाप या अन्य जोखिम वाले कारकों से प्रभावित हैं, उन्हें हर साल आंखों की जांच करानी चाहिए। अगर व्यक्ति की उम्र 60 साल या उससे अधिक है, तो आंखों की जांच एक जरूरी कदम है ताकि बीमारी का समय रहते पता चल सके और उसका इलाज शुरू किया जा सके।