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लगाव माटी से: जन्म भूमि से जुड़ाव के लिए गांवों में रख रहे उत्सव, संंबंधों में आ रही मजबूती

बरसों से देश के अलग-अलग राज्यों में बिजनेस कर रहे प्रवासी अपनी जड़ों से जुडऩे की मुहिम में जुटे हैं। पिछले पांच-छह वर्षों से जन्मभूमि से जुड़ाव के लिए विभिन्न गांवों में उत्सव आयोजित होने लगे हैं। इससे संबंधों में मजबूती आई है। एक दूसरे के प्रति जुड़ाव गहरा हुआ है।

हुबलीMar 26, 2025 / 06:53 pm

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

सिवाना उत्सव (फाइल फोटो)।

सिवाना उत्सव (फाइल फोटो)।

पिछले चार-पांच दशक से दक्षिण में आने का सिलसिला तेज
राजस्थान के विभिन्न गांवों से लोगों का देश के अलग-अलग राज्यों में जाने का सिलसिला कई वर्षों पहले शुरू हो गया। कई दक्षिणी राज्यों में राजस्थान मूल के लोगों की सातवीं-आठवीं पीढ़ी तक निवास कर रही है। पिछले चार-पांच दशक में राजस्थान से खासकर दक्षिणी राज्यों में आने का सिलसिला काफी तेज हुआ है। ऐसे में कई गांव-गली सूने हो गए हैं। कई गांव तो ऐसे हैं जहां के पचास-साठ फीसदी तक परिवार दक्षिणी राज्यों में शिफ्ट हो चुके हैं। उनका अपनी जन्मभूमि कभी-कभार ही जाना हो पाता है।
गांव के प्रति जुड़ाव कम हो रहा
हालात यह है कि कई परिवार शादी-ब्याह भी दक्षिण में ही करने लगे हैं। ऐसे में गांव के प्रति जुड़ाव भी कम होने लगा था। ऐसे हालात में कई गांवों में प्रवासियों ने अपनी जन्मभूमि से जुडऩे के लिए गांव में ही दो से तीन दिन के समारोह की शुरुआत की। इसके तहत विभिन्न प्रदेशों में बिजनेस या नौकरी कर रहे उस गांव के लोग उत्सव में शरीक होते हैं।
उत्सव के जरिए बढ़ रही निकटता
विभिन्न प्रदेशों में बिजनेस के चलते एक ही गांव के होते हुए भी आपसी परिचय नहीं हो पाता। ऐसे में इस तरह के उत्सव निसंदेह एक दूसरे को निकट से पहचानने का अवसर उपलब्ध करा रहे हैं। मौजूदा तकनीक के दौर में भले ही लोग आपस में तकनीकी रूप से जुड़े रहते हैं लेकिन रूबरू मिलने का अवसर कम मिल पाता है। ऐसे में इस तरह के उत्सव एवं समारोह लोगों को एक-दूसरे के करीब लाने का अवसर भी उपलब्ध करा रहे हैं।
जन्मभूमि से जोडऩे का सराहनीय प्रयास
कर्नाटक के बल्लारी मेंं निवास कर रहे राजस्थान के सिवाना मूल के अनील बागरेचा कहते हैं, तीन साल से सिवाना उत्सव का आयोजन लगातार हो रहा है। तीन दिन के कार्यक्रम के दौरान धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं खेलकूद के आयोजन होते हैं। सिवाना मूल के लोगों को अपनी जन्मभूमि से जोडऩे का यह प्रयास सराहनीय है। विभिन्न तरह की गतिविधियों के आयोजन से आपसी संबंधों में भी मजबूती आती है। इससे एक-दूसरे से जुड़ाव महसूस करते हैं। सिवाना में जैन समाज के करीब ढाई हजार से अधिक परिवार हैं लेकिन अधिकांश परिवार बिजनेस के सिलसिले में अन्य प्रदेशों में शिफ्ट हो चुके हैं। राजस्थान के विभिन्न शहरों के अलावा कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना समेत अन्य स्थानों पर सिवाना मूल के लोग व्यवसाय अधिक कर रहे हैं। वर्तमान में सिवाना में सौ कमरों के ओसवाल भवन का निर्माण किया जा रहा है। ऐसे में आने वाले समय में शादी-ब्याह यदि गांव में ही करते हैं तो लोगों को अधिक सुविधा हो सकेगी।
अब हर दो साल से युवा सम्मेलन
कर्नाटक के हुब्बल्ली में निवास कर रहे राजस्थान के कल्याणपुर मूल के मुुकेश बागरेचा कहते हैं, राजस्थान के कल्याणपुर में पिछले साल बहन-बेटी-जंवाई सम्मेलन का आयोजन किया गया था। कल्याणपुर युवा मित्र मंडल की मेजबानी में हुए इस आयोजन में देशभर से बहन-बेटियां पहुंची थीं। इससे पहले 2018 में भी युवा सम्मेलन का आयोजन किया गया था। अब निर्णय लिया गया है कि हर दो साल में एक बार युवा सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। ताकि देश के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले कल्याणपुर मूल के लोग आपस में एक-दूसरे से मिल सकें। मौजूदा समय में कल्याणपुर में केवल तीन परिवार ही स्थाई रूप में निवास कर रहे हैं। अन्य परिवार कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना समेत अन्य प्रदेश में बिजनेस कर रहे है। सम्मेलन में विभिन्न धार्मिक-सामाजिक आयोजन रखे जाते हैं जिससे लोगों का जुड़ाव भी बढ़ता है।
नई पीढ़ी का गांव से लगाव और बढ़ेगा
कर्नाटक के गदग में निवास कर रहे राजस्थान के कनाना मूल के दीपचन्द तातेड़ कहते हैं, राजस्थान के कनाना में वर्ष 2023 एवं 2024 में ओसवाल समाज कनाना उत्सव का आयोजन किया गया। अब हर दो साल में ऐसा आयोजन करने का निर्णय लिया गया है। कनाना में जैन समाज के दो सौ परिवार है लेकिन अधिकांश परिवार कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना समेत अन्य राज्यों में बिजनेस कर रहे हैं। पिछले साल कनाना में चार दिन का कार्यक्रम रखा गया था। इसके तहत सांस्कृतिक, धार्मिक एवं खेलकूद के आयोजन हुए। इस तरह के आयोजन के जरिए हम एक-दूसरे से परिचित हो पाते हैं। इससे नई पीढ़ी का भी गांव से लगाव और बढ़ेगा।

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