राजस्थान मूल के लोगों ने कहा कि राजस्थान की भूमि वीरता, शौर्य और गौरवशाली इतिहास से ओत-प्रोत है। राजस्थान में जयपुर का आमेर किला, उदयपुर का सिटी पैलेस, जोधपुर का मेहरानगढ़ किला, जैसलमेर का सोनार किला, चित्तौडग़ढ़ किला और कुंभलगढ़ किला विश्व धरोहर स्थलों में शामिल हैं। राजस्थान की संस्कृति रंगीन और समृद्ध है। यहां के लोक नृत्य घूमर, कालबेलिया और भवाई नृत्य अपनी अनूठी शैली के लिए प्रसिद्ध हैं। लोक संगीत में ‘मांड’, ‘पंछीड़ा’ और ‘केसरिया बालम’ जैसे गीत लोगों के हृदय को छू जाते हैं। राजस्थान के पारंपरिक परिधानइसकी सांस्कृतिक पहचान को दर्शाते हैं। राजस्थान का पारंपरिक भोजन बेहद स्वादिष्ट और विशिष्ट होता है। दाल-बाटी-चूरमा, गट्टे की सब्जी, केर-सांगरी, मिर्ची बड़ा और घेवर यहां के प्रमुख व्यंजन हैं।
श्री वर्धमान स्थानकवासी श्रावक संघ के अध्यक्ष रूपचन्द पालरेचा ने राजस्थान की ऐतिहासिक भूमि को अनूठा बताया। दिनेश पालरेचा समदड़ी ने कहा कि राजस्थान से हमारा जुड़ाव आज भी बना हुआ है। हर साल 5 से 6 बार राजस्थान जाते हैं। पिछले साल यहां पुष्कर साधना केन्द्र समदड़ी की शाखा खोली गई।
नरेश पालरेचा समदड़ी ने कहा कि राजस्थान जाने पर जो शांति का अनुभव होता है, उसे शब्दों में वर्णन नहीं कर सकते। दक्षिण में रहते हुए राजस्थान के रीति-रिवाज व परम्पराओं को निभा रहे हैं। किशनलाल बाघमार कुचेरा ने कहा कि प्रवासी समाज के लोग सेवा कार्य में सदैव आगे रहते हैं। सेवा व समर्पण की भावना से काम करते हैं।
पृथ्वीराज भंडारी पाली ने कहा कि राजस्थान से बराबर नाता बना हुआ है। राजस्थान के रीति-रिवाज को निभा रहे हैं। नलिन कुमार बाघमार लुणसरा ने कहा कि राजस्थान की कला एवं संस्कृति का कोई जवाब नहीं है। यहां का खान-पान, भाषा, रीति-रिवाज बेहतरीन है। लाभचन्द लूंकड़ समदड़ी ने राजस्थान की परम्पराओं का समर्थन किया।