scriptपीपा महाराज का 702 वां जयंती महोत्सव 12 अप्रेल को, कई धार्मिक कार्यक्रम होंगे | Pipa Maharaj's 702nd birth anniversary celebrations will be held on April 12, many religious programs will be held | Patrika News
हुबली

पीपा महाराज का 702 वां जयंती महोत्सव 12 अप्रेल को, कई धार्मिक कार्यक्रम होंगे

संत शिरोमणि पीपा महाराज का 702 वां जयंती महोत्सव 12 अप्रेल को श्रद्धा, भक्ति एवं उत्साह के साथ मनाया जाएगा। समस्त श्री पीपा क्षत्रीय(दर्जी) समाज उत्तर कर्नाटक हुब्बल्ली के तत्वावधान में इस दिन विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। कार्यक्रम के प्रमुख सहयोगी ललितकुमार, महेन्द्र कुमार दैय्या परिवार धुंधाड़ा है।

हुबलीApr 08, 2025 / 12:47 pm

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

पीपा महाराज

पीपा महाराज

एक दिन पहले होगा सत्संग का आयोजन
महोत्सव के तहत 12 अप्रेल को सुबह 7 बजे हुब्बल्ली के सीबीटी किला हनुमान मंदिर के पास स्थित श्री पीपा क्षत्रीय (दर्जी) समाज भवन में सत्यनारायण भगवान की कथा होगी। इसी दिन दोपहर 12.15 बजे से हुब्बल्ली के वालवेकर गली स्थित अग्रसेन भवन में महाप्रसादी रखी गई है। महोत्सव के एक दिन पहले 11 अप्रेल को सायं 6 बजे से श्री पीपा क्षत्रीय समाज भवन में सत्संग का आयोजन किया जाएगा। महोत्सव को लेकर समस्त श्री पीपा क्षत्रीय (दर्जी) समाज उत्तर कर्नाटक हुब्बल्ली के पदाधिकारी एवं सदस्य तैयारियों में लगे हैं।
धर्म और संस्कृति को फैलाया पीपा महाराज ने
भारत की आध्यात्मिक संस्कृति को गतिमान करने में संतों-महात्माओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस क्रम में मध्यकाल में गढ़ गागरौन के प्रतापी शासक राव प्रताप सिंह का नाम उल्लेखनीय है। जिन्होंने राजा रहते हुए न केवल तत्कालीन सुल्तानों से लोहा लिया, अपितु कालांतर में आध्यात्म की राह पर अग्रसर होकर संत पीपाजी के नाम से धर्म और संस्कृति की ध्वजा को चहुंदिशा फैलाया। संत रामानंद के बारह शिष्यों में कबीर, धन्ना, रैदास आदि के साथ संत पीपा का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता हैं। संत पीपा ने आत्मिक और आध्यात्मिक जागृति के साथ समाज में व्याप्त कुरीतियों और हिंसा आदि का पुरजोर विरोध किया। समाज और संस्कृति के प्रति उनका योगदान इतिहास की थाती है। उन्होंने राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि क्षेत्रों के भ्रमण में सांस्कृतिक चेतना और आध्यात्मिक उत्थान के कार्य किए। पर्दा प्रथा, हिंसा आदि का विरोध और स्वावलम्बन, आंतरिक स्वतंत्रता आदि के माध्यम से उन्होंने सुसुप्त चेतना को पुनर्जीवित करने का कार्य किया। उनका भक्ति साहित्य आज भी लोकगायन में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनकी वाणियों को गुरु ग्रन्थ साहिब में स्थान मिलना यह प्रमाणित करता है कि समाज और संस्कृति के उन्नयन में उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है ।

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