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हुबली

मेरा क्या अपराध कि मेरा गांव गली घर छूटा, आंचल से बिछड़े को जग ने पीताम्बर पहनाया…

नवग्रह तीर्थक्षेत्र के महामस्तकाभिषेक समारोह में हुआ कवि सम्मेलन: दिखा कुमार विश्वास का क्रेज, देर रात तक कविताएं सुनने डटे रहे श्रोता

हुबलीJan 25, 2025 / 07:41 pm

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

हुब्बल्ली के पास वरूर स्थित नवग्रह तीर्थक्षेत्र के महामस्तकाभिषेक समारोह में आयोजित कवि सम्मेलन में कविता पाठ करते कुमार विश्वास तथा मंचासीन अन्य कवि।

हुब्बल्ली के पास वरूर स्थित नवग्रह तीर्थक्षेत्र के महामस्तकाभिषेक समारोह में आयोजित कवि सम्मेलन में कविता पाठ करते कुमार विश्वास तथा मंचासीन अन्य कवि।

रिश्ता-रिश्ता तुम जानो, तुम मेरे हो बात खत्म, इश्क घुला और जात खत्म, चांद खिला और रात खत्म, नए दौर की प्रेम कथा, जिस्म मिला जज्बात खत्म। और मैं अपने गीत-गजलों से उसे पैगाम करता हूं, उसी की दी हुई दौलत उसी के नाम करता हूं…समेत विभिन्न गीत-गजलों के जरिए देश के जाने-माने कवि कुमार विश्वास ने कवि सम्मेलन में समां बांध किया। हुब्बल्ली (कर्नाटक) के पास वरूर स्थित नवग्रह तीर्थक्षेत्र के महामस्तकाभिषेक समारोह में आयोजित कवि सम्मेलन में कुमार विश्वास ने एक से बढ़कर एक कविता, गीत एवं गजलें सुनाकर समारोह को यागदार बना दिया। कुमार विश्वास को सुनने के लिए श्रोता देर रात तक डटे रहे।
गीत सुनाकर पाई दाद
कुमार विश्वास ने कब तक गीत सुनाऊं राधा, मथुरा छूटी, छूटी द्वारिका, इन्द्रप्रस्थ ठुकराऊं, बंसी छूटी, गोकुल छूटा, कब तक चक्र चलाऊं…और बचपन से प्रभुता का बोझा ढोते कटी जवानी, हर पल षडयंत्रों में उलझी सांसें आनी-जानी… सुनाकर खूब वाहवाही लूटी। उन्होंने दो मांओं ने लाड लडाया दो चेहरों ने चाहा, फिर भी भरी द्वारिका में मैं खुद को लगा पराया… तथा मेरा क्या अपराध कि मेरा गांव गली घर छूटा, आंचल से बिछड़े को जग ने पीताम्बर पहनाया…गीत सुनाकर खूब दाद पाई।
कवि सम्मेलन को दी उंचाइयां
कुमार विश्वास ने अपनी चिर-परिचित कविता कोई दीवाना कहता हैं, कोई पागल समझता हैं, मगर धरती की बेचैनी को बादल समझता हैं…सुनाई तो श्रोताओं ने तालियों की गडग़ड़ाहट से स्वागत किया। उन्होंने मैं अपने गीत-गजलों से उसे पैगाम करता हूं, उसी की दी हुई दौलत उसी के नाम करता हूं, हवा का काम हैं चलना, दिए का काम हैं जलना, वो अपना काम करती हैं, मैं अपना काम करता हूं…सुनाकर कवि सम्मेलन को उंचाइयां दींं।
लेकिन पापा उस मोबाइल की अब भी किस्त चुकाते हैं…
कवि सुदीप भोला ने नमो-नमो के नारे खूब हुए जयकारे…समेत कई पैरिडियों के माध्यम से लोगों की वाहवाही लूटी। उन्होंने कविता के जरिए बेेटियों की मौजूदा स्थिति का वास्तविक चित्रण किया। सुदीप भोला ने जब पापा ने हैं पीपल डे पर मोबाइल मंगवाया था…आखिर में वो शहजादा कोई पंचर वाला निकला था… लेकिन पापा उस मोबाइल की अब भी किस्त चुकाते हैं…नामक कविता सुनाई तो लोगों की आंखों में आंसूं आ गए। उन्होंने कविता के जरिए यह बताने की कोशिश की कि किस तरह मोबाइल संस्कृति ने हमें बेशर्म बनाकर छोड़ दिया।
कोई रिश्ता मां के बराबर नहीं हैं…
लखनऊ से आई कवयित्री साक्षी तिवारी ने कोई जाति वर्ण धर्म देश से बड़ा नहीं, वह मनुष्य क्या जो देश के साथ खड़ा नहीं…गीत पढ़ा। उनकी मां पर पढ़ी कविता हजारों स्वरों में कोई स्वर नहीं है, कोई मां के जैसा भी अक्षर नहीं हैं… तथा कई सारे रिश्ते जिए हमने कोई रिश्ता मां के बराबर नहीं हैं…श्रोताओं को खूब पसंद आई।
क्षणिकाओं से श्रोताओं को गुदगुदाया
आगरा से आए हास्य कवि रमेश मुस्कान ने छोटी-छोटी क्षणिकाओं के जरिए श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। मैं धरती पुत्र मुलायम सा, तुम हो कठोर मायावती…समेत अन्य कविताओं केे जरिए कवि सम्मेलन को उंचाइयां दीं।

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