31 मई को नजीर बनेगी महिला शक्ति, पीएम मोदी करेंगे संबोधित
एक ऐसी ही वीर, अदम्य साहस की धनी रानी अहिल्याबाई होलकर का जन्मदिवस हम फिर मनाने जा रहे हैं। मध्य प्रदेश में 31 मई को महिला सशक्तिकरण, महिला शक्ति की ऐसी ही मिसाल कायम करने महिला महासम्मेलन आयोजित किया जा रहा है, रानी अहिल्याबाई के साथ ही महिलाओं को समर्पित इस कार्यक्रम को पीएम मोदी संबोधित करेंगे। ऐसे में रानी अहिल्याबाई का ये किस्सा एक बार फिर जहन में ताजा हो चला है… आप भी जानें न्याय की प्रतिमूर्ति रानी अहिल्याबाई के जीवन का ये किस्सा…शिवभक्त अहिल्याबाई का आदेश माना जाता था भगवान शिव का आदेश
होलकर राज्य की निशानी और देवी अहिल्याबाई के शासन में बनवाई गईं चांदी की दुर्लभ मुहरें अब भी मल्हार मार्तंड मंदिर के गर्भगृह में रखी हुई हैं। इन मोहरों का उपयोग अहिल्या के समय में होता था। अहिल्या के आदेश देने के बाद मुहर लगाई जाती थी, आदेश पत्र शिव का आदेश ही माना जाता था। छोटी-बड़ी चार तरह की मुहरें अब भी मंदिर में सुरक्षित हैं। इसीलिए, जो आदेश रानी अहिल्याबाई सुनाती थी, वो भगवान शिव का आदेश माना जाता था।बेटे को क्यों सुनाई थी मौत की सजा
एक बार जब अहिल्याबाई के बेटे मालेजी राव अपने रथ से सवार होकर राजबाड़ा के पास से गुजर रहे थे। उसी दौरान मार्ग के किनारे गाय का छोटा-सा बछड़ा भी खड़ा था। जैसे ही मालेजी राव का रथ वहां से गुजरा अचानक कूदता-फांदता बछड़ा रथ की चपेट में आ गया और बुरी तरह घायल हो गया। थोड़ी देर में तड़प-तड़प कर उसकी वहीं मौत हो गई। इस घटना को नजरअंदाज कर मालेजी राव आगे बढ़ गए। इसके बाद गाय अपने मृतक बछड़े के पास वहीं बैठ गई। वो अपने बछड़े को नहीं छोड़ रही थी।जब किसी ने डरते हुए लिया अहिल्याबाई के बेटे का नाम
कुछ ही देर बाद वहां से अहिल्याबाई भी वहां से गुजर रही थीं। तभी उन्होंने बछड़े के पास बैठी हुई एक गाय को देखा, तो रुक गईं। उन्हें गाय के बछड़े की मौत की जानकारी दी गई। लेकिन उसकी मौत कैसे हुई ये बात कोई बताने को तैयार नहीं था। अंततः सख्ती से पूछने पर किसी ने डरते हुए उन्हें बताया कि मालेजी के रथ की चपेट में आकर बछड़ा मर गया। यह घटनाक्रम जानने के बाद अहिल्या ने दरबार में मालेजी की धर्मपत्नी मेनाबाई को बुलाकर पूछा कि यदि कोई व्यक्ति किसी की मां के सामने उसके बेटे का कत्ल कर दे तो, उसे क्या दंड देना चाहिए? मेनाबाई ने तुरंत जवाब दिया कि उसे मृत्युदंड देना चाहिए।रानी ने दिया आदेश- मालोजीराव को रथ से कुचलकर मृत्युदंड दिया जाए
इसके बाद अहिल्याबाई ने आदेश दिया कि उनके बेटे मालोजीराव के हाथ-पैर बांध दिए जाएं और उन्हें उसी प्रकार से रथ से कुचलकर मृत्यु दंड दिया जाए, जिस प्रकार गाय के बछड़े की मौत हुई थी।
बेटे की जान लेने खुद रथ पर चढ़ गई थीं देवी अहिल्याबाई
रानी के इस आदेश के बाद कोई भी व्यक्ति उस रथ का सारथी बनने को तैयार नहीं था। जब कोई भी उस रथ की लगाम नहीं थाम रहा था तब, अहिल्याबाई खुद आकर रथ पर बैठ गईं। रानी जब रथ आगे बढ़ा रही थीं, तब एक ऐसी घटना हुई, जिसने सभी को हैरान कर दिया। वह मृतक बछड़ा फिर से उठ खड़ा हुआ और रानी के रथ के सामने आकर खड़ा हो गया। अहिल्याबाई के आदेश के बाद जब उस बछड़े को जितनी बार रथ के सामने से हटाया गया, वह उतनी ही बार रथ के सामने आकर खड़ा हो जाता।ये भी जानें
** इतिहासकार ई. मार्सडेन के अनुसार साधारण शिक्षित अहिल्याबाई 10 वर्ष की अल्पायु में ही मालवा में होल्कर वंशीय राज्य के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के पुत्र खण्डेराव के साथ परिणय सूत्र में बंध गई थीं।** अपनी कर्तव्यनिष्ठा से उन्होंने सास-ससुर, पति और अन्य संबंधियों के दिल में जगह बना ली थी।
** अहिल्याबाई के दो संतान थीं एक पुत्र और एक पुत्री।
** 29 वर्ष की आयु में ही अहिल्याबाई होलकर के पति का देहांत हो गया।
** सन् 1766 ई. में वीरवर ससुर मल्हारराव भी चल बसे।
** मल्हारराव के जाने के बाद अहिल्याबाई होल्कर शासन की बागडोर संभालनी पड़ी।
** उस समय देखते ही देखते पुत्र मालेराव, दोहित्र नत्थू, दामाद फणसे, पुत्री मुक्ता भी माँ को अकेला ही छोड़ चल बसे।
** जीवन में इतने दुख झेलकर भी महारानी अहिल्याबाई होलकर ने प्रजा हित के लिए आगे बढ़ीं और सफल दायित्वपूर्ण ** राजशाही का संचालन करते हुए 13 अगस्त, 1795 को दुनिया को अलविदा कह गईं।
** नर्मदा तट पर स्थित महेश्वर के किले में उन्होंने अंतिम सांस ली।