जमानत रद्द, आरोपियों को दो दिन में आत्मसमर्पण का आदेश
गुरुवार को सुनाए गए आदेश में, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा दी गई जमानत को रद्द करते हुए आरोपियों को दो दिन के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया। यह फैसला केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की अपील पर आया है, जिसने हाई कोर्ट के जमानत आदेश को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट का बयान, “आरोप इतने गंभीर कि झकझोर देते हैं न्यायालय की अंतरात्मा” सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “तथ्यों को देखते हुए, यह एक ऐसा मामला है जिसमें आरोप इतने गंभीर हैं कि वे न्यायालय की अंतरात्मा को झकझोर देते हैं। साथ ही, आरोपियों द्वारा ट्रायल की प्रक्रिया को प्रभावित करने की संभावना भी साफ नजर आ रही है।”
क्या थी घटना –
यह घटना 2 मई 2021 की है, जब पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए थे। आरोपियों ने गुमसिमा गांव में भाजपा समर्थक के घर घुसकर तोड़फोड़ की और उसकी पत्नी के साथ यौन उत्पीड़न का प्रयास किया। पीड़िता ने केरोसीन डालकर आत्महत्या की धमकी दी, जिससे आरोपी वहां से भाग निकले। हालांकि, स्थानीय पुलिस ने FIR दर्ज करने से इनकार कर परिवार को गांव छोड़ने की सलाह दी। न्यायालय ने इस बात पर भी चिंता जताई कि शिकायतकर्ता को 3 मई 2021 को FIR दर्ज कराने से मना कर दिया गया और परिवार की सुरक्षा के लिए गांव छोड़ने को कहा गया।
उच्च न्यायालय के आदेश पर दर्ज हुई FIR
इस मामले में FIR उच्च न्यायालय के आदेश के बाद ही दर्ज हुई। 19 अगस्त 2021 को हाई कोर्ट ने CBI को आदेश दिया था कि वह महिलाओं के खिलाफ बलात्कार या बलात्कार के प्रयास जैसे मामलों की जांच करें। न्यायालय ने कहा कि चुनाव परिणामों के दिन भाजपा समर्थक के घर किया गया यह संगठित हमला बदले की भावना से प्रेरित था। आरोपियों ने विपक्षी दल के सदस्यों को डराने-धमकाने का प्रयास किया, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
ट्रायल में देरी और सुरक्षा के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी नोट किया कि चार्जशीट 2022 में दाखिल होने के बावजूद ट्रायल में कोई खास प्रगति नहीं हुई है। अभियोजन ने बताया कि आरोपियों का सहयोग न करना ट्रायल में देरी का कारण है। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया है कि वह छह माह के भीतर ट्रायल पूरा करे। साथ ही, राज्य के गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक को शिकायतकर्ता व महत्वपूर्ण गवाहों को पूरी सुरक्षा देने का आदेश दिया गया है ताकि वे बिना किसी डर के गवाही दे सकें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि उसके दिए गए निर्देशों का कोई उल्लंघन होता है, तो इसकी रिपोर्टिंग अपीलकर्ता यानी CBI या शिकायतकर्ता द्वारा की जानी चाहिए, ताकि समय रहते उचित कार्रवाई की जा सके।