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राजस्थान की 3 यूनिवर्सिटीज में PhD पर 5 साल का बैन, 3 से 5 लाख रुपए में दे रही हैं डिग्रियां

यूजीसी ने अब सभी निजी यूनिवर्सिटी को निर्देश दिए हैं कि उन्हें अपने रिसर्च पोर्टल पर पीएचडी से संबंधित हर जानकारी साझा करनी होगी।

जयपुरJan 28, 2025 / 07:45 am

Lokendra Sainger

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विजय शर्मा
जयपुर। यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) ने राजस्थान की तीन यूनिवर्सिटी में पांच साल तक पीएचडी प्रवेश प्रवेश पर रोक लगा दी है। यूजीसी ने यह कार्रवाई पीएचडी डिग्रियां देने में किए जा रहे नियमों के उल्लंघन पर की है। पहली बार की गई यूजीसी की इस कार्रवाई ने प्रदेश की अन्य निजी यूनिवर्सिटी पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। राजस्थान में यूनिवर्सिटी की ओर से पीएचडी की डिग्रियां देने और प्रवेश प्रक्रिया में यूजीसी नियमों की पालना नहीं की जा रही है।
इसी को देखते हुए यूजीसी ने अब सभी निजी यूनिवर्सिटी को निर्देश दिए हैं कि उन्हें अपने रिसर्च पोर्टल पर पीएचडी से संबंधित हर जानकारी साझा करनी होगी। यानी यूनिवर्सिटी में पीएचडी में कितने छात्र नामांकित हैं, किस विषय में छात्र पीएचडी कर रहा है और कितने गाइड हैं। इतना ही नहीं, यूनिवर्सिटी में विभागवार असिस्टेंट, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर कितने हैं। यह हर जानकारी यूनिवर्सिटी को रिसर्च पोर्टल पर देनी होगी। यूजीसी की ओर से की गई इस सख्ती से अब निजी यूनिवर्सिटी पर तलवार लटक गई है। इसका कारण है कि निजी यूनिवर्सिटी यूजीसी नियमों को ताक पर रख तीन से पांच लाख रुपए में पीएचडी डिग्रियां दे रही हैं।

ये ब्योरा देना होगा निजी यूनिवर्सिटी को

  1. कितने छात्रों ने प्रवेश लिया
  2. पीएचडी टॉपिक की छात्रवार जानकारी
  3. विषय गाइड का नाम कितने प्रोफेसर, असिस्टेंट और एसोसिएट प्रोफेसर है
  4. कितनी सीटें हैं कितनी सैलरी दी जा रही शिक्षकों को ऑडिट रिपोर्ट

यूजीसी का यह है नियम

एक असिस्टेंट प्रोफेसर, 4 एसोसिएट प्रोफेसर 6 और प्रोफेसर 8 शोधार्थियों को पीएचडी करा सकता है। सहायक आचार्य का सैलरी पे स्केल नियमानुसार 57,700 होना चाहिए। इन गाइडलाइन को अगर पूरा नहीं किया जाता तो पीएचडी डिग्री अवैध मानी जाएगी।

इस तरह पीएचडी में फर्जीवाड़ा

दरअसल, नियमानुसार असिस्टेट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर यूनिवर्सिटी में नियमित होने चाहिए। ये सीमित सीटों पर ही पीएचडी करा सकते हैं, लेकिन निजी यूनिवर्सिटी 15 से 20 हजार रुपए में एक सहायक प्रोफेसर को रखती हैं और तय सीटों से अधिक पीएचडी में पर प्रवेश लेती हैं। इतना ही नहीं, गेस्ट फैकल्टी के तौर पर लगाए गए सहायक प्रोफेसर से ही पीएचडी कराई जा रही है। इसके अलावा रिटायर्ड प्रोफेसर के नाम पर भी पीएचडी करा ली जाती है। यह प्रक्रिया गुपचुप पूरी की जाती है। इसलिए यूनिवर्सिटी की ओर से अपना रिकॉर्ड ऑनलाइन साझा नहीं किया जाता।

उच्च शिक्षा और शोध में होगा सुधार

निजी विश्वविद्यालयों की ओर से निर्धारित प्रक्रिया का पालन न कर पीएचडी डिग्रियां प्रदान किया जाना बहुत गंभीर विषय है। यूजीसी की ओर से इस प्रवृत्ति पर अंकुश सराहनीय कार्य है। यदि कोई विश्वविद्यालय यूजीसी के निर्धारित मापदंडों का पालन नहीं करता है तो ऐसे मामलों में यूजीसी की ओर से और भी प्रभावी कार्यवाही की जा सकती है। यूजीसी की ओर से जो सख्ती की गई है इससे उच्च शिक्षा और शोध में काफी सुधार होगा। – डॉ. देव स्वरूप, कुलपति बाबा आमटे दिव्यांग विश्विद्यालय और पूर्व एडिशनल सेक्रेटरी यूजीसी

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