फूड डिलीवरी, कैब सर्विस, ई-कॉमर्स और घरेलू सेवाओं से जुड़े हजारों गिग वर्कर्स रोजाना काम पर निकलते हैं। लेकिन उनके पास न तो स्थायी रोजगार की गारंटी है, न ही बीमा। साथ ही पेंशन या स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है।
राजस्थान सरकार ने 2023 में देश का पहला गिग वर्कर्स वेलफेयर बिल पास किया था, जिसमें 200 करोड़ रुपए के फंड, विशिष्ट आइडी और वेलफेयर बोर्ड के गठन की बात कही गई थी। हालांकि, अब तक इस पर अमल नहीं किया गया है।
ऐसे बढ़ रही गिग वर्कर्स की जरूरत -04 लाख गिग वर्कर्स हैं गुलाबी नगर सहित राज्य के अन्य शहरों में। -80 फीसदी तक निर्भरता हो गई मेट्रो सिटी में गिग वर्कर्स पर।
सरकारों के वादे और हकीकत केंद्र सरकार ने इस वर्ष बजट में गिग वर्कर्स के लिए ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत स्वास्थ्य बीमा और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का वादा किया था। अनुमान था कि इससे एक करोड़ गिग वर्कर्स को लाभ मिलेगा। लेकिन जयपुर में न तो पंजीकरण की प्रक्रिया तेज हुई और न ही बीमा कार्ड वितरित हुए।
इसलिए भी हो रही देरी -ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण प्रक्रिया जटिल है और कई गिग वर्कर्स के पास आवश्यक दस्तावेज ही नहीं हैं। -एग्रीगेटर कंपनियों की भागीदारी नहीं है। कई कंपनियां वेलफेयर फीस कटौती या श्रमिकों के पंजीकरण में सहयोग नहीं कर रहीं।
-जयपुर के अधिकांश गिग वर्कर्स को इन योजनाओं की जानकारी ही नहीं है। राज्य सरकार ने गिग श्रमिकों के लिए बजट में 200 और 250 करोड़ की घोषणा की। नियम कायदे न बनने के कारण यह पैसा काम नहीं आ सका। कम्पनियों पर सरकार का नियंत्रण नहीं है। गिग वर्कर्स कम से कम पैसे में काम कर रहा है। उसके पास न तो सामाजिक सुरक्षा है और काम के दौरान सुविधाओं के नाम पर भी खाली हाथ हैं।
-धर्मेंद्र वैष्णव, अध्यक्ष, राजस्थान ऐप आधारित श्रमिक यूनियन