scriptHoli Festival : दुनियाभर में जयपुर से जाते है गुलाल गोटे, बनाते है मुस्लिम परिवार और खरीदते है हिंदू, भाईचारे की अनूठी मिशाल | holi festival 2025 : Gulal Gote is sent from Jaipur to all over the world, Muslim families make it and Hindus buy it, a unique example of brotherhood | Patrika News
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Holi Festival : दुनियाभर में जयपुर से जाते है गुलाल गोटे, बनाते है मुस्लिम परिवार और खरीदते है हिंदू, भाईचारे की अनूठी मिशाल

बाजारों में रजवाड़ी गुलाल गोटे की झलक देखने को मिलने लगी है।

जयपुरMar 11, 2025 / 11:30 am

Manish Chaturvedi

जयपुर। होली के त्यौहार की तैयारियां जोरों पर हैं और बाजारों में रजवाड़ी गुलाल गोटे की झलक देखने को मिलने लगी है। जयपुर के मनियारों के रास्ते में इन पारंपरिक गुलाल गोटों की बिक्री हो रही है, जो आपसी भाईचारे और सांप्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक माने जाते हैं। यह गुलाल गोटा मुस्लिम परिवारों द्वारा तैयार किया जाता है। लेकिन हिंदू समुदाय के लोग इसे खरीदते हैं और होली के त्यौहार में रंग भरने के लिए उपयोग करते हैं।
जयपुर के मुस्लिम परिवार की सात पीढ़ियां गुलाल गोटा बनाने के कार्य में लगी हुई हैं। अमजद खान का परिवार इस परंपरा को वर्षों से निभा रहा है। वे बताते हैं कि गुलाल गोटा बनाने की परंपरा तब शुरू हुई थी जब राजाओं ने स्थानीय कारीगरों से होली के लिए कुछ अनोखा और विशेष बनाने की मांग की थी। इसी के बाद लाख से बनी यह हल्की, गोल और सजावटी गेंद तैयार की गई, जिसमें सूखा रंग भरा जाता है।
लाख के उत्पाद बनाने में माहिर मनिहार समुदाय के परिवार मनिहारों के रास्ते में रहते है। जिसका नाम भी उनके शिल्प पर रखा गया है। वर्तमान में जयपुर में लगभग 300 से अधिक मुस्लिम परिवार इस काम में लगे हुए हैं। ये सभी एक ही परिवार के सदस्य हैं और पीढ़ियों से इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। इस पारंपरिक कला का मुख्य केंद्र जयपुर ही है, जहां से गुलाल गोटे देशभर के विभिन्न बाजारों तक पहुंचते हैं।
देशभर और विदेशों तक गुलाल गोटे की सप्लाई..

होली के नजदीक आते ही गुलाल गोटों की मांग काफी बढ़ जाती है। गुलाल गोटे बनाने वाले कारीगर अमजद खान के अनुसार, इस बार लोगों में होली को लेकर जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है। मांग इतनी अधिक है कि वे आपूर्ति पूरी करने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं। खान बताते हैं कि गुलाल गोटा बनाने की प्रक्रिया काफी मेहनत भरी होती है। पहले लाख को पिघलाकर छोटे-छोटे गोल आकार में ढाला जाता है, फिर उनमें सूखा गुलाल भरा जाता है। पहले यह परंपरा केवल राजाओं और महाराजाओं के बीच प्रचलित थी, लेकिन अब यह आम जनता तक भी पहुंच चुकी है। गुलाल गोटा केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हो चुका है। जयपुर से यह पारंपरिक उत्पाद जर्मनी, जापान, ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य देशों तक निर्यात किया जाता है। कारीगरों के अनुसार गुलाल गोटे का कारोबार लाखों रुपये तक पहुंच जाता है। इनकी अधिकतर बुकिंग पहले ही हो जाती है। जिससे होली के समय तक लगभग सभी गुलाल गोटे बिक चुके होते हैं।
रंगों का उत्सव और भाईचारे की मिसाल…

गुलाल गोटा न केवल होली के रंगों को और सुंदर बनाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि किस तरह एक मुस्लिम समुदाय की मेहनत से हिंदुओं के त्योहार में रंग भरते हैं। यह परंपरा सांप्रदायिक सौहार्द्र और साझा संस्कृति की मिसाल पेश करती है। इस होली पर गुलाल गोटों की चमक जयपुर के बाजारों से निकलकर देश-विदेश तक पहुंच रही है और यह परंपरा आने वाले वर्षों में और मजबूत होती दिखाई दे रही है।

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