जयपुर। जब शिक्षा केवल किताबों तक सीमित न होकर समाज के वंचित वर्ग तक पहुंचती है तब असली बदलाव की कहानी जन्म लेती है। कुछ ऐसी ही मिसाल पेश की है बाल आश्रम की सह-संस्थापिका सुमेधा कैलाश ने, जिन्होंने कोटपूतली-बहरोड़ जिले के विराटनगर ब्लॉक की बंजारा बस्तियों में शिक्षा की अलख जगाई है। वर्ष 2008 में अलवर जिले के थानागाजी क्षेत्र की भांगडोली बस्ती से शुरू हुआ यह सफर आज कोटपूतली-बहरोड़ जिले की 13 बस्तियों तक पहुंच चुका है जहां 372 बच्चे नियमित शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। जबकि 483 बच्चों को सरकारी विद्यालयों से जोड़ा जा चुका है।
सिर्फ अक्षरज्ञान नहीं, सामाजिक बदलाव का केंद्र बंजारा शिक्षा केंद्रों में बच्चों को केवल पढ़ना-लिखना ही नहीं सिखाया जा रहा बल्कि मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य, कंप्यूटर ट्रेनिंग और कैरियर काउंसलिंग जैसी सुविधाएं भी दी जा रही हैं। फ्रीडम फेलोशिप योजना के जरिए प्रतिभावान बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित किया जा रहा है। बच्चों को दूध, फल, पौष्टिक आहार व खेल सामग्री उपलब्ध कराकर संपूर्ण विकास की दिशा में सार्थक पहल की जा रही है।
सामाजिक सशक्तिकरण की मिसाल बना तारा बंजारा का संघर्ष बंजारा बस्ती नीमड़ी की छात्रा तारा बंजारा आज उन हजारों बच्चों की आवाज बन चुकी हैं जिनका बचपन अक्सर अनदेखा रह जाता है। तारा ने बाल विवाह का विरोध करते हुए शिक्षा का दामन थामा और अपनी लगन से ‘रिबाक फिट टू फाइट अवार्ड’ प्राप्त कर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बंजारा समुदाय की बेटियों की आवाज बुलंद की है। तारा बंजारा आज शिक्षा और स्वाभिमान की प्रतीक बन चुकी हैं।
सरकारी योजनाओं की पहुंच, प्रयास, प्रेरणा और परिवर्तन इन केंद्रों के प्रयासों से अनेक भूमिहीन बंजारा परिवारों को पट्टे मिले, साथ ही पेंशन, उज्ज्वला गैस, पालनहार योजना, राशन-पैन-आधार, मनरेगा जॉब कार्ड जैसी योजनाओं के लिए भी जागरूकता और सहायता उपलब्ध कराई गई। यह आंदोलन केवल शिक्षा नहीं बल्कि एक सामाजिक नवजागरण का प्रतीक है। बाल आश्रम कि सह-संस्थापिका सुमेधा कैलाश ने चरितार्थ कर दिखाया कि बंजारा शिक्षा केंद्रों से करुणा, संकल्प और शिक्षा एक साथ चलते हैं तो बदलाव सिर्फ संभव ही नहीं बल्कि स्थायी भी हो जाता है।