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जयपुर

जोंक थेरेपी कई रोगों में हो रही कारगर साबित, लोगों का बढ़ रहा रुझान

– नेचुरल ब्लड थिनर का करती है काम। लीच थेरेपी गैंग्रीन और हृदय रोगों की तरह डायबिटीज की विभिन्न जलिटलाओं के इलाज में व्यापक रूप से उपयोग की जाती है।

जयपुरMar 05, 2025 / 11:28 am

MOHIT SHARMA

मोहित शर्मा/जयपुर. शरीर में ऐसी कई बीमारियां हैं जो लीच यानी की जोंक या जलौका थेरेपी के उपयोग से कंट्रोल की जा सकती है। खासकर स्किन डिजीज में यह काफी कारगर साबित हो रही है। ये कोई नई थेरेपी नहीं है। लीच थेरेपी बहुत लंबे समय से चलन में है। प्राचीन मिस्र, भारत, अरब और ग्रीक जैसे देशों में त्वचा रोगों, तंत्रिका तंत्र में परेशानी और सूजन को दूर करने के लिए इस थेरेपी का उपयोग किया जाता है। लीच मरीज के जहां भी रोग होता है उसके ऊपर रख दी जाती है कुछ ही समय में यह खराब खून को सक कर लेती है। उसके बाद इसे डिटॉक्स किया जाता है। 5 से 7 दिन के लिए इसे हल्दी के पानी में छोड़ कर फिर से काम में लेते हैं।
लीच थेरेपी एक अनोखी उपचार पद्धति है जिसे हीरुडिनोपैथी के नाम से भी जाना जाता है। लीच यानी जोंक हीमेटोफैगस जीव हैं। इसके लार और अन्य स्रावों में कई जैविक रूप से सक्रिय यौगिक पाए जाते हैं। ये यौगिक कई बीमारियों के इलाज में कारगर होते हैं। आजकल यह चिकित्सा पद्धति काफी लोकप्रिय हो रही है। यह आयुर्वेद की ही एक पद्धति  है।
इन रोगों में आती है काम
बापू नगर राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय की डॉ.रीटा अग्रवाल ने बताया कि लीच थेरेपी स्किन डिजीज, सोरायसिस, कील मुंहासे, हेयर फॉल, वैरिकाज-वेंस, डायबिटिक फुट इंजरी, आर्थराइटिस, हाई ब्लड प्रेशर, कार्डियोवास्कुलर डिजीज (हृदय रोग), ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाने, मेटाबॉलिज्म आदि के काम आती है
रक्त के थक्के को जमने नहीं देता
राजकीय ब्लॉक आयूष चिकित्सालय के डॉ. अनिल मीणा ने बताया कि लीच थेरेपी का उपयोग हृदय रोगों के उपचार में किया जाता है। लीच द्वारा उत्पन्न लार (सलाइवा) में हीरुदिन पेपटाइड (एक प्रकार का प्रोटीन ) मौजूद होता है जो रक्त को प्राकृतिक रुप से पतला करता है। यह नेचुरल ब्लड थिनर का काम करता है, जो रक्त के थक्के (क्लोटिंग को रोकता है) को जमने नहीं देता है। लीच थेरेपी पैरों में सूजन, दर्द और त्वचा के रंग में सुधार में काफी कारगर साबित हो रही है। लीच थेरेपी से पैर की नस में रक्त का थक्का नहीं बनता है जिससे पैदल चलने की क्षमता में सुधार होता है। इसके लिए संक्रमित हिस्से में चार से छह लीच थेरेपी की प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
डायबिटीज मेलेटस में रक्त शर्करा के स्तर में वृद्धि से गंभीर लक्षण और जटिलताएं उत्पन्न हो सकती है। लीच थेरेपी गैंग्रीन और हृदय रोगों की तरह डायबिटीज की विभिन्न जलिटलाओं के इलाज में व्यापक रूप से उपयोग की जाती है।
लीच थेरेपी ऑस्टियो आर्थराइटिस के लक्षणों के उपचार में अधिक प्रभावी है। लीच के लार में मौजूद हीरुदिन पेपटाइड गठिया के रोगियों में सूजन और दर्द को कम करने में मदद करता है। यह थेरेपी एक सप्ताह के भीतर विकलांगता में सुधार कर सकता है।

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