सरकारी के साथ अब मल्टीलिंगुअल एजुकेशन कांसेप्ट निजी स्कूलों में भी देखने को मिल रहा है। पहले जहां पूरा जोर केवल अंग्रेज़ी पर था, अब वहां हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों में पढ़ाई की जा रही है। विशेषज्ञों की मानें तो जब बच्चों को उनकी अपनी भाषा में पढ़ाया जाता है तो वे जल्दी और अच्छे से सीखते हैं। आत्मविश्वास बढ़ता है और वे अपनी बात खुलकर कह पाते हैं। इससे स्कूल छोड़ने की दर भी कम होती है।
एनईपी 2020 के तहत कितनी जरूरी नई शिक्षा नीति के तहत कम से कम कक्षा 5 तक और संभव हो तो कक्षा 8 तक बच्चों को उनकी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाया जाना चाहिए। यह न सिर्फ शैक्षणिक दृष्टि से फायदेमंद है, बल्कि यह देश की भाषाई विविधता को भी सम्मान देने वाला कदम है। मल्टीलिंगुअल शिक्षा से बच्चों की बौद्धिक क्षमता भी बढ़ती है। वे ज्यादा रचनात्मक, तार्किक और बहुभाषी बनते हैं।
25 जिलों में स्थानीय भाषा में पढ़ाई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के प्रदेश में लागू होने के बाद स्थानीय भाषा में बाल वाटिकाओं में शिक्षण कार्य शुरू कराने की तैयारी है। राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद ने पाठ्यक्रम तैयार किया है। सत्र 2026 से ये कार्यक्रम प्रदेश के 25 जिलों में संचालित करने की तैयारी है।
राजस्थान में शिक्षा विभाग मल्टीलिंगुअल एजुकेशन को लेकर गंभीर प्रयास कर रहा है। डिजिटल कंटेंट, क्षेत्रीय भाषाओं में किताबें और शिक्षक प्रशिक्षण पर काम हो रहा है। यदि यह योजना सही दिशा में आगे बढ़ती है तो आने वाले समय में राजस्थान देश के अन्य राज्यों के लिए मॉडल बन सकता है।
राजेन्द्र शर्मा हंस, पूर्व शिक्षा अधिकारी