पूरे मामले की शिकायत मुख्य सचिव को की गई है। जिसमें बिलों पर पहले अनुचित ऑब्जेक्शन लगाने और बाद में उन्हें क्लियर कर देने की उच्च स्तरीय जांच की मांग की गई है। आरजीएचएस के अधिकारियों का कहना है कि वे केवल नियमों का पालन कर रहे हैं। एक अधिकारी ने कहा कि हमारी जिम्मेदारी है कि हम सभी दस्तावेज की जांच करें और सुनिश्चित करें कि सब कुछ सही हो। अगर कोई कमी पाई जाती है, तो हमें उसे ठीक करना होगा।
विवाद आपसी, मरीज परेशान
सरकार के पास आरजीएचएस दवा विक्रेताओं को भुगतान के लिए बजट नहीं होता। कई बार दवा विक्रेता हड़ताल पर उतर आते हैं। राज्य सरकार की ओर से यह योजना सरकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स के लिए संचालित है। दवा आपूर्ति ठप होने और विक्रेताओं के पास पूरी दवाई नहीं होने के कारण उन्हें परेशान होना पड़ रहा है। विक्रेताओं का आरोप रहता है कि महीनों से भुगतान बकाया होने के कारण वे दवा नहीं रख पा रहे। जबकि आरजीएचएस अधिकारियों का कहना है कि भुगतान एक सतत प्रक्रिया है और समय-समय पर किया जाता है। डॉक्टर ने पर्ची पर सही जांच नहीं लिखी, पर्ची पर लिखी जांच के अनुसार दवा नहीं लिखी तर्क: यह अधिकार डॉक्टर के हैं, फिर विक्रेता दोषी क्यों? पर्ची को साफ अपलोड नहीं किया गया
तर्क: अस्पताल या मरीज स्वयं भी अपलोड करता है तो विक्रेता कैसे दोषी? दवा विक्रेता ने वह दवा दी, जो आरजीएचएस पोर्टल पर नहीं है तर्क: बिल बनाते समय आरजीएचएस दवा का नाम स्वत: ही आता है, विक्रेता नई दवा की एंट्री कर ही नहीं सकता
पर्ची पर वाइटल नहीं लिखे गए विक्रेता के पास बीपी, वजन, तापमान और पल्स रेट बताने का अधिकार ही नहीं होता, फिर वह कैसे यह लिखेगा?