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जयपुर

राजस्थान के स्कूलों में सामाजिक-भावनात्मक शिक्षा अनिवार्य, बच्चों में आत्म-जागरूकता और सहानुभूति विकसित करेगी नई पहल

राजस्थान के स्कूलों में अब सामाजिक-भावनात्मक शिक्षा अनिवार्य बनाया जा रहा है। ‘सोशल इमोशनल लर्निंग सेल’ के जरिये बच्चों को आत्म-जागरूकता, सहानुभूति और तनाव प्रबंधन सिखाया जाएगा। शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण और सप्ताह में दो कक्षाएं संचालित होंगी।

जयपुरJul 15, 2025 / 09:48 am

Arvind Rao

Rajasthan Schools

Rajasthan Schools Social Emotional Learning (Photo Patrika)

जयपुर: अब राजस्थान के स्कूलों में शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं रही। बच्चों के विकास के लिए सामाजिक-भावनात्मक शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा रहा है। इसके तहत स्कूलों में ‘सोशल इमोशनल लर्निंग सेल’ की स्थापना की जा रही है।

इस पहल का उद्देश्य बच्चों को शैक्षणिक सफलता दिलाना ही नहीं, बल्कि बेहतर इंसान बनाना भी है। जो परिवार, समाज और अपने जीवन में संतुलन बनाए रख सकें। स्कूलों की इस पहल के तहत छात्रों को आत्म-जागरूकता, आत्म-नियंत्रण, सहानुभूति, निर्णय क्षमता और संबंधों को मजबूत करने की शिक्षा दी जा रही है। सेल के माध्यम से शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण दिया गया है, ताकि वे छात्रों की जरूरतों को समझ सकें।


बच्चों में सुरक्षा का भाव


कोविड-19 के बाद से बच्चों में चिंता और तनाव के मामले बढ़े हैं। सेल के जरिये बच्चों को उनकी भावनाओं को व्यक्त करना और उनसे निपटना सिखाया जाता है। स्कूल में सप्ताह में दो विशेष कक्षाएं हो रही हैं। जहां बच्चे समूह चर्चाओं, कहानी-कथन, और रोल-प्ले से सहानुभूति और सहयोग जैसे मूल्यों को सीखते हैं।

निजी स्कूल की काउंसलर प्रज्ञा राठौड़ के अनुसार, पहले स्कूलों में परीक्षा परिणामों पर ध्यान दिया जाता था। लेकिन भावनात्मक और सामाजिक शिक्षा के बिना बच्चों का विकास अधूरा है। ऐसे में सेल के जरिये ऐसा वातावरण तैयार किया जा रहा है, जहां बच्चे खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं और खुलकर बातचीत कर सकते हैं। इसका असर केवल छात्रों तक सीमित नहीं है बल्कि स्कूल और अभिभावकों के बीच भी संवाद मजबूत हुआ है।


बच्चों पर न केवल पढ़ाई का दबाव


आज के दौर में बच्चों पर न केवल पढ़ाई का दबाव है, बल्कि सामाजिक और भावनात्मक चुनौतियां भी हैं। सेल के जरिये बच्चे अपनी भावनाओं को समझना, उन्हें व्यक्त करना और दूसरों की भावनाओं को पहचानना सीखते हैं। इससे उनमें आत्म-नियंत्रण, सहानुभूति और तनाव प्रबंधन जैसे जीवन-कौशल विकसित होते हैं। यह मानसिक बीमारियों से बचाव में भी मददगार है।
-डॉ. आलोक त्यागी, मनोरोग विशेषज्ञ


पाठ्यक्रम में शामिल करने पर जोर


इस पहल को शुरू करने के पीछे यह कारण भी है कि बच्चे परिवार और समाज से दूर हो गए हैं। बच्चों की ओर से हिंसक घटनाएं करने के मामले सामने आ रहे हैं। बच्चे चोरी, नशे और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो रहे हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत सेल को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करने पर जोर दिया गया है।

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