जयपुर। गुनगुनी धूप के बाद ढलती शाम में फ्रंट लॉन का माहौल उस वक्त थम सा गया जब एक ही मंच पर बॉलीवुड सिंगर शेखर रवजियानी, स्वानंद किरकिरे और पवित्रा चारी गुनगुनाने लगे। बातों ही बातों में शेखर और स्वानंद ने श्रोताओं के बीच गाना बनाने का वादा कर डाला।
मंच से कलाकारों का इतना कहना था कि आगे की पंक्ति में बैठे श्रोता अपनी तरफ से गाने का मुखड़ा और अंतरा बताएंगे। हर कोई एक लाइन कहता तो दूसरा उसमें जोड़ने की कोशिश करता। वहीं, शेखर और स्वानंद इन लाइनों को सुरों में ढालते जाते। ऐसे में समां बंधता चला गया और मंच से गीतों की बारिश होने लगी। म्यूजिक की लाइव परफॉर्मेंस ने साहित्यप्रेमियों को दीवाना बना दिया।
‘दमादम मस्त कलंदर’ से लेकर ‘बावरा मन’ तक
गाना बनाने की यह ट्रेनिंग कब कलाकारों की परर्फोंमेस में बदल गई यह खुद श्रोताओं को पता नहीं चला। तीनों कलाकारों ने फिल्मी और गैर फिल्मी गीतों को गाकर जेएलएफ की शाम को यादगार बना दिया। कभी स्वानंद किरकिरे ’बावरा मन…,’ गुनगुनाते तो कभी शेखर ’दमादम मस्त कलंदर…,’ ’इश्क वाला लव…,’ ’रंग बरसे…,’ ’ओ री चिरैया…,’ ’झूमे जो पठान…,’ और ’अभी ना जाओ छोड़कर…,’ गीतों को गाया।
गाना गाने और बनाने की इस कड़ी में श्रोताओं की ओर से मिले मुखड़े ’पहली बार सुकून है’ में लोगों ने कई लाइनें जोड़ी। इस लाइन को आगे बढ़ते हुए स्वानंद किरकिरे ने ’तू है-मैं हूं और एक धुन है’ को आगे बढ़ाया तो शेखर ने इसे ज्यों ही सुरों में पिरोया तो माहौल संगीतमय बन चला। जैसे ही गाना बनकर तैयार हुआ तो सभी ने इसे गुनगुनाया और फिर ’जेएलएफ’ पर आधारित सॉन्ग ’जेएलएफ वाइब है यह तो अपनी लाइफ है…,’ गाकर फिजा में साहित्य उत्सव का रंग घोल दिया।
शेखर ने बताया कि हम सब स्टूडियो में भी ऐसे ही गानों को तैयार करते है। उन्होंने कहा कि आज से 14 साल पहले ’माटी’ नामक एलबम बनाया था। जिसमें अपने लिए कुछ गानों को बनाया था। उस दौरान स्टूडियो में कॉफी पीते-पीते ऑन द स्पॉट एक गाना तैयार हो गया था। जिसके बाद गाना बनाने का यह आइडिया आज जेएलएफ में आया। इस दौरान शेखर ने कहा कि जिन लोगों का सोचना है कि अच्छे गाने नहीं बन रहे हैं, उनसे कहना चाहूंगा कि बहुत कुछ अच्छा हो रहा है। बस उसकी तलाश कीजिए।