जयपुर. राज्य सरकारें और शहरी निकाय प्रदेश के बड़े शहरों में जन भागीदारी से विकास की बात तो करती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है। नियमानुसार तीन लाख से अधिक आबादी वाले निकायों (नगर निगम, परिषद व पालिका) में हर वार्ड के लिए एक समिति बनाई जानी थी। इसमें वार्ड पार्षद अध्यक्ष और उसी वार्ड के 5 नागरिक सदस्य होते। इससे वार्ड की समस्या, समाधान, डवलपमेंट के साथ रोजमर्रा के काम में भी आमजन की भूमिका रहती, लेकिन सरकारों ने न तो नगर पालिका अधिनियम की पालना की और न ही हाईकोर्ट के आदेश की। इससे 925 वार्डों के उन 90 लाख लोगों की आवाज को अनसुना कर दिया गया, जिस निकाय की आबादी 3 लाख से ज्यादा है। वार्ड समितियों के अभाव में न तो स्थानीय समस्याएं ठीक से सामने आ रही हैं, न ही योजनाओं में जनता की राय को तरजीह मिल रही है।
नियोजित विकास पर इस तरह असर -समिति वार्ड की जरूरत के अनुसार निकाय से काम की अनुशंसा करती, लेकिन जनभागीदारी न होने से बजट का सही उपयोग नहीं हो पा रहा है। -स्थानीय समस्याएं लंबित रहती हैं और विकास सिर्फ कागजों पर सीमित रह जाता है। काम की प्राथमिकता तय नहीं।
-ऊपरी दबाव और अपनों को उपकृत करने के चलते गैर जरूरी काम भी कराए जा रहे हैं। ये निकाय और उनके वार्ड अजमेर- 80 अलवर- 65 भीलवाड़ा- 70 बीकानेर- 80
जयपुर ग्रेटर- 150 जयपुर हैरिटेज- 100 जोधपुर उत्तर- 80 जोधपुर दक्षिण- 80 कोटा उत्तर- 70 कोटा दक्षिण- 80 उदयपुर- 70 (इसमें तीन लाख से अधिक आबादी वाले निकाय शामिल हैं)
नियमों की पालना नहीं 1. अधिनियम में है प्रावधान: नगरपालिका अधिनियम की धारा 54 में वार्ड समिति गठन करने प्रावधान है, लेकिन अभी तक नगर निगम, नगर परिषद और नगर पालिका ने इसकी पालना नहीं की। सरकार और नगरीय निकायों की मंशा ही नहीं रही कि वे जन भागीदार के साथ आगे बढ़ें।
2. न्यायालय ने दिलाया याद: इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी। हाईकोर्ट ने अतिरिक्त महाधिवक्ता को निर्देश दिए थे कि वे सरकार से स्थिति स्पष्ट कर लें कि नगरपालिका अधिनियम के तहत ऐसी कमेटी का गठन करेंगे या नहीं।