सीमावर्ती जैसलमेर शक्ति उपासना की अनूठी परंपरा का साक्षी है। यहां शक्ति स्वरूप देवी की पूजा ‘ठाळों’ में होती है, जो स्थानीय आस्था की विशेष पहचान है। आईनाथ माता के मंदिरों से लेकर तनोटराय मातेश्वरी तक, यह भूमि शक्ति साधना की दिव्यता से आलोकित है। मान्यता है कि सदियों पूर्व मामडज़ी ने मां हिंगलाज की कठिन आराधना कर सात पुत्रियों और एक पुत्र का वरदान पाया। उन्हीं की पहली संतान आवड़ माता शक्ति की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। उनकी बहनों में स्वांगिया माता, तनोट माता, तेमड़ेराय माता, देगराय माता, कालेडूंगराय माता, भादरिया माता और पनोधराराय माता भी जन-जन की आस्था का केंद्र हैं।
आस्था की अटूट डोर: शक्ति स्वरूपों का आह्वान
जैसलमेर से छह किलोमीटर दूर स्थित स्वांगिया माता का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए संकटमोचक स्थल है, जहां भक्त विपत्तियों में माता का आशीर्वाद मांगने आते हैं। वहीं, तनोट माता का मंदिर 1200 वर्षों से सीमा पर रक्षा का प्रतीक बना हुआ है। 1965 और 1971 के युद्धों में यहां गिरी सैकड़ों बम निष्क्रिय रह गए, जिसे चमत्कार माना जाता है।
शक्ति साधना की दिव्यता: पहाडिय़ों से धोरों तक
जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर तेमड़ेराय माता का मंदिर शक्ति की विजय का प्रतीक है, जहां देवी ने तेमड़ा दैत्य का संहार किया था। वहीं, 50 किलोमीटर दूर देगराय माता का मंदिर दैत्य वध की ऐतिहासिक कथा से जुड़ा है। जैसलमेर से 27 किलोमीटर दूर स्थित कालेडूंगराय माता का मंदिर अपने काले पत्थरों वाले पहाड़ी क्षेत्र के कारण विशेष पहचाना जाता है।
रेगिस्तान की शक्ति स्थली: भक्ति और इतिहास का संगम
पोकरण से 50 किलोमीटर दूर स्थित भादरिया माता का मंदिर शक्ति और ज्ञान का केंद्र है, जहां एशिया के विशालतम भूमिगत पुस्तकालयों में से एक स्थित है। वहीं, मोहनगढ़ से 21 किलोमीटर दूर पनोधराराय माता का मंदिर रेगिस्तान के बीच आस्था की अखंड जोत जलाए हुए है। जैसलमेर की यह शक्ति साधना न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है, बल्कि इतिहास, लोककथाओं और जनविश्वास की अमिट कड़ी भी है। यहां शक्ति उपासना केवल पूजा नहीं, बल्कि पीढिय़ों से संचित श्रद्धा का अमूल्य प्रतीक है।