ऐसे में बुजुर्ग को इस उम्र में भी बेटे की सार संभाल में दिन गुजारना पड़ता है। जंजीर में जकड़े में होने से उसका ज्यादातर समय चारपाई पर ही गुजरता है। इसकी वजह से पैर में बेड़ियों के काले निशान तक पड़ चुके हैं। शेरु की सार संभाल करने वाला कोई नहीं है। पिता अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वे प्रयास नाकाफी है। वर्तमान में मानसिक विमंदित शिकार शेरू खां को इलाज नहीं मिल पा रहा है। परिवार को न तो सरकारी योजना का लाभ मिल पा रहा और न ही इलाज।
सत्यापन के अभाव में अटकी पेंशन
सरकार ने गरीबों के लिए पेंशन की सुविधा तो उपलब्ध करवाती है, लेकिन सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के कारण आज शेरू खां की पेंशन अटकी हुई है। इनका कहना
पुत्र पिछले 12 सालों से जंजीरों में बंधा हुआ है। इनका मानसिक संतुलन ठीक नहीं है। सरकार अगर इनका इलाज करवाए तो ये ठीक हो सकता है।
–रायधन खां, पिता इनके परिवार की माली हालत है, सरकार को कल्याणकारी योजनाओं से जोड़कर लाभ देना चाहिए एवं शेरू खां का इलाज करवाए तो ये भी नारकीय जीवन से बाहर आ सकता है।
–
पूजाराम मेघवाल, ग्रामीण