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जांजगीर चंपा

RTE Admission 2025: निजी स्कूलों में एडमिशन तो है नि:शुल्क, महंगी किताबों और यूनिफार्म से परेशान पेरेंट्स…

RTE Admission 2025: जांजगीर-चांपा जिले में आर्थिक रूप से कमजोर स्थिति वाले अभिभावक भी उनके बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी बोले और अच्छे स्कूलों में पढ़ सके।

जांजगीर चंपाMay 30, 2025 / 01:20 pm

Shradha Jaiswal

RTE Admission 2025: निजी स्कूलों में एडमिशन तो है नि:शुल्क(photo-unsplash)

RTE Admission 2025: निजी स्कूलों में एडमिशन तो है नि:शुल्क(photo-unsplash)

RTE Admission 2025: छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में आर्थिक रूप से कमजोर स्थिति वाले अभिभावक भी उनके बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी बोले और अच्छे स्कूलों में पढ़ सके। इसलिए आरटीई के तहत अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में प्रवेश दिलवाते हैं। एडमिशन तो नि:शुल्क मिल जाता है और सालाना फीस भी नहीं लगती। लेकिन महंगी किताबों और यूनिफार्म का बोझ उठाना अभिभावकों को भारी पड़ रहा है।
स्कूल ड्रेस, किताबें और स्कूल का स्टैंडर्ड मैच करने में आर्थिक रुप से कमजोर अभिभावक परेशान हो जाते हैं। जबकि शासन की ओर से बच्चों की फीस के अलावा यूनिफार्म के लिए भी राशि दी जाती है।
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RTE Admission 2025: महंगाई के दौर में लुट रहे अभिभावक

इतना ही नहीं सरकारी किताबें भी मुत में स्कूलों को मुहैया कराई जाती है, लेकिन अधिकांश निजी स्कूलाें के द्वारा न तो बच्चों को यूनिफार्म उपलब्ध कराया जाता है और न ही किताबें। इसके बजाए अभिभावकों को जहां निजी पब्लिकेशन की चलने वाली किताबों की लिस्ट थमा दी जाती है तो यूनिफार्म भी अभिभावकों को ही बाहर से खरीदने बोल दिया जाता है।
नर्सरी से लेकर महज दूसरी-तीसरी कक्षा तक के छात्रों का स्कूल ड्रेस 1000 से 1500 रुपए से कम में नहीं आती। पुस्तकें भी 22 से 2500 रुपए के आसपास मिलती है। हालांकि निजी स्कूलों को समय पर आरटीई की फीस का भुगतान नहीं होना भी एक समस्या रहती है। जिले में अभी 1 करोड़ रुपए से अधिक की राशि का भुगतान निजी स्कूलों को नहीं हुआ है। इससे निजी स्कूलों को संचालन करने में समस्या आ रही है।

शासन से मिली किताबें नहीं पढ़ाते

स्कूल शिक्षा विभाग के द्वारा निजी स्कूलों को भी बकायदा मुत में किताबें उपलब्ध कराई जाती है। लेकिन कापटीशन और स्टैण्टर्ड शिक्षा के नाम पर स्कूल प्रबंधन प्राइवेट पब्लिकेशन की पुस्तकें चलाते हैं और इसका पैसा भी अभिभावकों की जेब से लगता है। शासन की ओर से जो किताबें स्कूलाें को दी जाती है, अधिकांश स्कूलों में बच्चों को वे किताबें पढ़ाई ही नहीं जाती। सालभर स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को पता तक नहीं होता कि सरकारी किताबें क्या होती है।
डीईओ अश्वनी भारद्वाज ने कहा की आरटीई के तहत प्रवेशित बच्चाें को नियमानुसार सभी सुविधाएं मिलनी चाहिए। इस संबंध में जानकारी ली जाएगी। शिकायत मिलेगी तो कार्रवाई जरूर होगी।

डीपीआई का आदेश भी दरकिनार

आरटीई के तहत प्रवेशित बच्चों को मुत किताबें और यूनिफार्म स्कूल प्रबंधन के द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है या नहीं, यह सुनिश्चित करने जिला शिक्षाधिकारी को पत्र भी जारी किया जा चुका है।
जिसमें यह भी निर्देशित किया गया था कि संबंधित शिक्षा विभाग के अधिकारी समय-समय पर स्कूलों का निरीक्षण करेंगे और यह सुनिश्चित करें। लेकिन डीपीआई का यह आदेश केवल विभाग तक सिमट कर रह गया है। अधिकारी कभी निरीक्षण पर नहीं निकलते और निजी स्कूलों के द्वारा इस नियम का पालन नहीं किया जाता।

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