जिले में जल दोहन की स्थिति-
ब्लॉक प्रीमानसून पोस्टमानसून अंतर अकलेरा 9.76 5.48 4.28 बकानी 9.8 5.33 4.47 भ.मंडी 10.85 6.45 4.4 डग 14.45 8.13 6.14 झालरापाटन 12.5 5.48 7.02 खानपुर 12.7 5.36 7.34 म.थाना 10.42 6.5 3.92 पिड़ावा 12.84 7.33 5.51 कुल 93.32 50.24 43.08 घटते भूजल व अतिदोहन के ये बड़े कारण – सिंचाई कार्य में सबसे ज्यादा भूजल का उपयोग
-औद्योगिकीकरण व शहरीकरण -बढ़ती जनसंख्या -बारिश की कमी – लगातार पेड़-पौधों की कटाई -भूजल का अंधाधुध दोहन – बिना अनुमति के हजारों फीट तक जमीन में बोरवाल लगाए जाना।
भूजल संरक्षण के लिए ये करें
-घरों के वाटर हॉर्वेस्टिंग सिस्टम लगाकर अपने छत के पानी से भूजल को रिचार्ज करें – सिंचाई पद्धति को बदलना होगा, जैसे फव्वारा, ड्रिप सिंचाई प्रणाली को अपनाना होगा -सप्लाई से जो पानी मिल रहा उसका ही उपयोग करें, बहुत ही संकट के समय ही हम नलकूप आदि का उपयोग करें -वेस्ट पानी का उपयोग रिसाईकिल कर करना -कम पानी की जरूरत से उगने वाली फसलों पर काम करना
-इंडस्ट्रीज में उपयोग में लिए पानी के पुनरू उपयोग के लिए रिसाइकलिंग पर फोकस करना -कुएं, बावडिय़ां, तालाबों का जीर्णोद्वार करना, बारिश से पहले उन तक पानी पहुंचे ऐसे प्रबंध करना
इनका कहना है-
जिले में पठारी एरिया ज्यादा है, बारिश का पानी बहकर निकल जाता है। यहां छोटे-छोटे एनिकट बनाने होंगे। पहाड़ी क्षेत्रों में अमृत सरोवर एकिनट जैसी संरचनाए बनाकर जल संरक्षण कर वाटर लेवल बढ़ा सकते हैं। इसके लिए हर व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से जागरूक होना होगा।
अनिल पालीवाल, भूजल वैज्ञानिक, झालावाड़।
सोच-समझकर करें उपयोग-
असल में आमजन को भी जल संरक्षण के अभियान में जुडऩा चाहिए। भूजल एक सीमित संसाधन है इसका उपयोग हम सोच समझकर करें। छोटी-छोटी बातों को ध्यान रखते हुए हम भूजल को बचा सकते है। वाटर हॉर्वेस्टिंग सिस्टम के जरिए भी जमीन को रिचार्ज करने का काम भी हमें करना चाहिए।कृषि के क्षेत्र में भी पारम्परिक की बजाय आधुनिक पद्धति को अपनाना होगा।जिले में अटल भूजल व राज्य सरकार द्वारा मुख्यमंत्री जल स्वालंबन आदि के माध्यम से जल संरक्षण किया जा रहा है।
जीतमल नागर, अधीक्षण अभियंता, वाटरशेड,झालावाड़।