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Jhunjhunu News: खुले पड़े बोरवेल की तरफ गौर फरमाइए सरकार; मां से अलग नहीं हो आर्यन, खिलखिलाती रहे चेतना

Jhunjhunu News: राजस्थान में पिछले पांच साल में करीब चौदह जगह लापरवाही के बोरवले में बालक गिर चुके।

झुंझुनूJan 04, 2025 / 04:15 pm

Alfiya Khan

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राजेश शर्मा।
झुंझुनूं। नौ दिसम्बर को दौसा जिले के कालीखाड़ गांव में पांच साल का आर्यन खुले बोरवेल में गिर गया। प्रशासन ने लाखों रुपए खर्च कर बचाने का प्रयास किया, लेकिन सभी प्रयास नाकाम रहे, माता-पिता से उनका लाडला हमेशा के लिए बिछड़ गया। कोटपूतली के किरतपुरा गांव की बडियाली ढाणी में तीन साल की चेतना खुले बोरवेल में जिंदगी की जंग हार गई।
यह दो दाग सरकारी सिस्टम के ऐसे हैं जो कभी धुल नहीं सकते। राजस्थान में पिछले पांच साल में करीब चौदह जगह लापरवाही के बोरवले में बालक गिर चुके। इनमें करीब सात को बचा लिया गया, लेकिन सात की केवल यादें बची हैं। इनका सभी का कारण बोरवेल मालिक व सरकारी सिस्टम की बड़ी लापरवाही रही।
बिना अनुमति बोरवेल खोदने की छूट भी ऐसे हादसे बढ़ा रही है। जबकि बोरवेल के लिए अलग से पोर्टल हो और ऑनलाइन अनुमति अनिवार्य हो तो सभी का रेकॉर्ड भी रह सकता है और उन पर नजर भी रखी जा सकती है।

ढक्कन एक से दो हजार का, नुकसान जानमाल का

बोरवेल पर लगने वाले ढक्कन की कीमत करीब एक से दो हजार रुपए होती है। इससे बोरवेल को इतनी मजबूती से बंद किया जा सकता है कि उसे बच्चे किसी भी सूरत में नहीं खोल सकते। लेकिन जब हादसा होता है तो पूरी सरकार मशीनरी, कलक्टर, एसपी, एसडीएम, डिप्टी थानेदार, पूरा गांव, सिविल डिफेन्स, स्थानीय निकाय, मेडिकल टीम, एसडीआरएफ, एनडीआरएफ , अनेक जेसीबी, ट्रैक्टर, डम्पर, पोकलेन आदि लग जाते हैं।
इसमें करीब पचास लाख रुपए से ज्यादा खर्चा आता है। कई जगह तो राशि करोड़ों में पहुंच जाती है। माहौल पैनिक बन जाता है, इतना होने के बावजूद मासूम को नहीं बचाया जाता।

पहले थी रोक, अब बेरोकटोक

राजस्थान में वर्ष 2011 में यह नियम बनाया गया था कि बिना अनुमति ट्यूबवेल और कुएं नहीं खोदे जा सकेंगे। वर्ष 2020 तक ऐसा ही होता रहा। लेकिन सात दिसम्बर 2020 को तत्कालीन राजस्थान सरकार के मंत्रिमंडल की बैठक में यह निर्णय किया कि अब डार्क जोन में भी किसान बोरवेल खोद सकेंगे।
इसके बाद पूरे राज्य में दिन रात बोरवेल खुदने लग गए। कई जिलों में तो हालात ऐसे हो गए कि एक किलोमीटर के दायरे में चालीस से पचास बोरवेल हो गए। इस कारण भूजल स्तर भी तेजी से गिरने लगा है। अब व्यक्ति कहीं भी आसानी से बोरवेल करवा लेता है। कई जगह तो हजार से पंद्रह सौ फीट नीचे से जमीन से पानी निकाला जा रहा है।

प्रिंस गिरा था बोरवेल में

हरियाणा के कुरूक्षेत्र ज़िले के गांव हलदेहेड़ी गांव में 21 जुलाई 2006 को बालक प्रिंस 60 फ़ीट गहरे बोरवेल में गिर गया था। 23 जुलाई को भारतीय सेना, स्थानीय प्रशासन व अन्य के सहयोग से उसे जिंदा बाहर निकाल लिया गया था। तब पूरे देश में प्रार्थनाओं का दौर चला था। सुप्रीम कोर्ट ने भी 1 फरवरी 2010 को बोरवेल में गिरने से होने वाले हादसों को रोकने के लिए कई निर्देश जारी किए थे, लेकिन राज्य के अधिकांश हिस्सों में निर्देशों की सही पालना नहीं हो रही।

पोर्टल पर अनुमति मिले, ताकि रेकॉर्ड रहे

जिसे भी बोरवेल करवाना है, वह सरकारी पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करे। इसमें एक क्लॉज डालकर यह लिखवाएं कि बोरवेल में पानी आए तो भी खुला नहीं छोड़ेंगे, उसे तुरंत चालू किया जाएगा। अगर पानी नहीं आया तो भी उसे बंद करवाया जाएगा। बोरवेल को बंद करने का फोटोग्राफ सात दिन के अंदर पोर्टल पर अपलोड किया जाए।
इसमें किसी को कोई परेशानी नहीं आएगी। कहीं चक्कर भी नहीं काटने पड़ेंगे। इससे प्रशासन के पास रेकॉर्ड रहेगा। अनुमति देने या नहीं देने की समय सीमा तय हो। आवेदन ई मित्र या एसएसओ आईडी से हो जाएगा। इसका बड़ा फायदा किसान को ही होगा, क्योंकि बच्चों का दर्द आखिर उसे ही भुगतना पड़ता है।
-लक्ष्मण कुड़ी, रिटायर्ड कलक्टर

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