कभी आता था पानी
बावड़ी में कभी पानी आता था। इसका उपयोग पेयजल, नहाने व पशुओं को पिलाने के काम आता था। स्थानीय लोगों का दावा है उस जमाने में बावड़ी के पाने में नहाने से अनेक चर्म रोग दूर हो जाते थे।241 साल पुरानी इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना
सर्दुल सिंह शेखावत की पत्नी मेड़तनी द्वारा सन 1783 में निर्मित यह बावड़ी करीब 241 वर्ष पुरानी है। मनसा माता मंदिर की पहाड़ियों की तलहटी में स्थित इस बावड़ी में नीचे बने कमरों और झरोखों से कूलर जैसी शीतल हवा आती है। लगभग 150 फीट गहरी इस बावड़ी में एक कुआं भी है। मजबूत पत्थरों और घरठ के चूने से निर्मित इसकी दीवारें पांच से दस फीट तक चौड़ी हैं। बावड़ी के मुख्य द्वार से जल स्तर तक पहुंचने के लिए 128 सीढ़ियां बनी हुई हैं, जो आज भी सुरक्षित हैं।फिल्मों और वेब सीरीज की शूटिंग का लोकप्रिय स्थल
बावड़ी की सुरक्षा में तैनात रिटायर्ड फौजी सुरेश सैनी ने बताया कि यहां बॉलीवुड फिल्मों और वेब सीरीज की शूटिंग भी हो चुकी है। यहां हर दिन पंद्रह से बीस देसी व विदेशी पर्यटक आते रहते हैं। सर्दियों में विदेशी सैलानियों की संख्या अधिक रहती है। हाल ही में बावड़ी की सफाई करवाई गई है और जल्द ही इसका जीर्णोद्धार भी प्रस्तावित है।कभी था झुंझुनूं का प्रमुख मार्ग
निर्माण काल में यह स्थान झुंझुनूं से अन्य बड़े शहरों को जोड़ने वाला मुख्य मार्ग था, जिसे सिंघाना-डीडवाना मार्ग के नाम से जाना जाता था। उस समय यात्रा करने वालों के लिए यह बावड़ी विश्राम और जल स्रोत के रूप में काम आती थी।पत्रिका ने उठाया था मुद्दा
राजस्थान पत्रिका ने बावड़ी की खबर प्रमुखता से प्रकाशित की। इसके बाद इसकी साफ-सफाई की गई। गार्ड भी नियुक्त किए गए। अब वहां साफ-सफाई रहने से पर्यटकों की संख्या बढ़ने लगी है।जानिए मेड़तनी बावड़ी के बारे में
– निर्माण वर्ष: 1783 ई.–निर्माता: सार्दुल सिंह शेखावत की पत्नी बख्त कंवर ने करवाया था। इनको मेड़तनी के नाम से जाना जाता है।
– स्थान: पीपली चौक के पास।
–विशेषता: 150 फीट से अधिक गहरी बावड़ी।
-128 सीढ़ियां और एक कुआं।
-मोटे पत्थरों और घरठ के चूने से निर्मित। -झरोखों और कमरों से निकलती है शीतल हवा।
फिल्मांकन: बॉलीवुड फिल्मों और वेब सीरीज की शूटिंग हो चुकी है।
पर्यटक: हर माह 100-150 देशी व विदेशी पर्यटक, फ्रांस और बेल्जियम से सर्वाधिक आगमन।
समय: प्रतिदिन सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुली रहती है।