लगभग 25000 फर्जी डिग्रियां जारी की
प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि यूनिवर्सिटी ने लगभग 25,000 फर्जी डिग्रियां जारी की हैं और इन डिग्रियों के बदले छात्रों से लगभग 30 करोड़ रुपये की अवैध वसूली की गई। मामले का मुख्य आरोपी यूनिवर्सिटी के चेयरमैन कमल मेहता है, जिस पर एक संगठित सिंडिकेट के जरिए देशभर में फर्जी डिग्रियां बेचने का आरोप है। जांच में यह भी सामने आया है कि कमल मेहता ने बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट की स्वीकृति के बिना चार राष्ट्रीय समन्वयक (नेशनल कोऑर्डिनेटर) नियुक्त किए और विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार के फर्जी हस्ताक्षरों से नियुक्ति पत्र जारी किए। जिला स्तर पर भी समन्वयकों की नियुक्ति कर उनसे मोटी रकम वसूली गई।
अब तक 21 करोड़ की संपत्ति पर कार्रवाई
जानकारी के मुताबिक ईडी ने अब तक 21 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति जब्त की है जो कि कथित आपराधिक गतिविधियों से अर्जित बताई जा रही है। पीएमएलए (2002) के तहत यह कार्रवाई की गई है और ईडी का कहना है कि यह प्रक्रिया अभी जारी है और आगे और खुलासे होने की संभावना है। ईडी ने संकेत दिए हैं कि इस मामले में और भी संपत्तियों की कुर्की हो सकती है और अन्य सह-आरोपियों की पहचान भी की जा रही है।
शिक्षा की आड़ में आर्थिक अपराध
ईडी के अनुसार यह पूरा मामला शिक्षा के नाम पर छात्रों और अभिभावकों को धोखा देकर पैसा ऐंठने का है। आरोपी संस्था ने विश्वविद्यालय की विश्वसनीयता का दुरुपयोग करते हुए न केवल शिक्षा व्यवस्था को चोट पहुंचाई, बल्कि देशभर में हजारों छात्रों का भविष्य खतरे में डाला।