बता दें कि जांच के बाद डॉक्टरों ने बताया कि यह एक अत्यंत दुर्लभ प्रकार की गांठ प्रिसैक्रल श्वान्नोमा है। जो रेट्रोपरिटोनियम (पेट के पिछले भाग) में स्थित थी। इस प्रकार की गांठ हर 20 से 50 लाख लोगों में से किसी एक को होती है।
वरिष्ठ सर्जन ने क्या बताया
वरिष्ठ सर्जन डॉ. दिनेश दत्त शर्मा ने बताया कि मरीज की जांच के बाद यह स्पष्ट हुआ कि यह एक अत्यंत दुर्लभ प्रकार की गांठ है। यह ट्यूमर शरीर की नसों की बाहरी झिल्ली से उत्पन्न होता है और आमतौर पर धीरे-धीरे बढ़ता है। यह गांठ पेट के पीछे, रेट्रोपेरिटोनियम और रीड की हड्डी के सामने वाले हिस्से (जिसे प्रिसैक्रल रीजन कहा जाता है) में पाई गई।
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प्रिसैक्रल ट्यूमर स्वयं ही अत्यंत दुर्लभ होते हैं और उनमें भी श्वान्नोमा का पाया जाना और भी असामान्य है। कई बार यह ट्यूमर वर्षों तक बिना किसी स्पष्ट लक्षण के शरीर में बढ़ता रहता है और जब लक्षण प्रकट होते हैं तो ये पेल्विक दर्द, पीठ के निचले हिस्से में दर्द, पेशाब या मलत्याग में समस्या के रूप में सामने आते हैं। मरीज में इस गांठ का आकार लगभग 7 गुणा 7 गुणा 4 सेमी था।
कुछ ऐसे थी जटिलता और जोखिम
यह ट्यूमर एब्डॉमिनल एओरटा और इन्फीरियर वेना केवा के विभाजन पर स्थित थी और दोनों रक्त वाहिकाओं से चिपकी हुई थी। यह पेशाब की नली से भी सटा हुआ था, जिससे ऑपरेशन की जटिलता कई गुना बढ़ गई थी। प्रमुख रक्त वाहिकाओं का कटना, यूरेटर या आसपास के महत्वपूर्ण अंगों को क्षति, पेशाब में असंयम और लकवे का खतरा बना हुआ था।
यह रहे टीम में शामिल
डॉ. दिनेश दत्त शर्मा के अलावा डॉ. पारंग आसेरी, डॉ. क्षेत्रपाल डाबी, डॉ. हेमंत कुमार, डॉ. कुणाल चितारा तथा सीटीवीएस विभागाध्यक्ष डॉ. सुभाष बलारा और डॉ. अमित चौधरी की टीम ने रक्त वाहिकाओं की जटिल संरचनाओं का संरक्षण एवं मरम्मत का कार्य किया। एनेस्थीसिया विभाग से डॉ. गीता सिंगारिया, डॉ. गायत्री तंवर और डॉ. मोनिका, नर्सिंग टीम में दिलीप, रेखा पवार, कलावती चौधरी, अंजू सैनी की भागीदारी रही।