मोर्चा भारी दबाव में
श्रम मंत्री को दिए गए पत्र में थापा ने लिखा है कि जीटीए क्षेत्र के चाय बागान के जो श्रमिक जहां जैसे रह रहे हैं, उन्हें वहां वैसे ही जमीन दी जाए। इसमें भूखंड की किसी भी सीमा का हवाला दिए बिना निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से जमीन वितरण किया जाए। मैं सरकार से अधिसूचना में यह सुनिश्चित करने के लिए आग्रह करता हूं। साथ ही उन्होंने पत्र में सरकार से स्पष्ट अधिसूचना जारी होने तक चाय बागान की जमीन का सर्वेक्षण रोकने का भी अनुरोध किया है। चाय बागान की जमीन के संबंध में राज्य सरकार के निर्णय को लेकर अनित थापा की पार्टी भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा भारी दबाव में है।
पिछले वर्ष अगस्त में अधिसूचना जारी
राज्य सरकार ने एक अगस्त 2024 को एक अधिसूचना जारी कर पूरे उत्तर बंगाल के चाय बागान में रह रहे श्रमिकों को पांच डेसीमल तक जमीन देने का निर्देश दिया। दार्जिलिंग के पहाड़ी क्षेत्र में विपक्ष इसका कड़ा विरोध कर रहा है। उनका तर्क है कि प्राय: चाय बागान श्रमिकों के पास पांच डेसीमल से अधिक जमीन है और उन्हें उनकी पूरी जमीन दी जानी चाहिए। कई नेताओं ने यह भी आरोप लगाया कि राज्य सरकार प्रत्येक श्रमिक के लिए पांच डेसीमल से अधिक भूमि निजी घरानों को वितरित कर सकती है। शुरू में अनित थापा ने राज्य सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया, लेकिन बाद में यू-टर्न ले लिया और विरोध प्रदर्शन किया। आखिरकार राज्य सरकार ने 12 सितंबर को दार्जिलिंग और कलिम्पोंग के डीएम को जमीन का सर्वे रोकने का आदेश दिया। राज्य के भूमि और भूमि सुधार और शरणार्थी राहत और पुनर्वास विभाग की भूमि नीति शाखा ने दो नवंबर को फिर से दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिला मजिस्ट्रेट को सर्वेक्षण कार्य शुरू करने का निर्देश दिया। विपक्ष ने इस निर्देश का भी विरोध किया। विपक्ष का आरोप है कि दो नवंबर को जारी निर्देश में यह स्पष्ट नहीं है कि जो जहां जैसे है के आधार पर श्रमिकों को उनके कब्जे वाली पूरी जमीन मिलेगी या नहीं।