अपूर्वा त्रिपाठी के प्रयासों के कारण अब तक दक्षिण भारत की फसल मानी जाने वाली काली मिर्च को मध्य भारत के
छत्तीसगढ़ में सफलतापूर्वक उगाया जा रहा है, जिससे इस क्षेत्र को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। बस्तर संभाग के कई जिलों मे एग्रीकल्चर को लेकर अनेक प्रयोग किए जा रहे हैं।
CG News: महिलाओं के सशक्तिकरण में भूमिका
डॉ. अपूर्वा ने बस्तर क्षेत्र की आदिवासी महिलाओं को जैविक कृषि के माध्यम से आत्मनिर्भर बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने इन महिलाओं को प्रशिक्षित कर उनके उत्पादों को प्रोसेसिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग के माध्यम से राष्ट्रीय बाजार में पहचान दिलाई है। इसके चलते आदिवासी परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। उल्लेखनीय कार्यों में बस्तर के आदिवासी समाज के साथ मिलकर वन औषधियों पर आधारित कई तरह की हर्बल चाय का निर्माण प्रमुख है, जो परंपरागत आदिवासी चिकित्सा पद्धति पर आधारित हैं। ये हर्बल चाय विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान में अत्यंत प्रभावी सिद्ध हुई हैं।
अपूर्वा का बड़ा योगदान
CG News: इसके अतिरिक्त, डॉ. राजाराम त्रिपाठी द्वारा विकसित की गई अत्यंत उत्पादक ‘
मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16′ (एमडीबीपी-16) प्रजाति के विकास में भी अपूर्वा का बड़ा योगदान रहा है। यह विशेष प्रजाति अन्य काली मिर्च की किस्मों की तुलना में चार से पांच गुना अधिक उत्पादन देती है और इसकी गुणवत्ता भी अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है। इस विशेष प्रजाति को भारत सरकार के में आधिकारिक रूप से पंजीकृत भी कराया गया है।