बसों में किराया सूची गायब है और आपात स्थिति में लोगों को उपलब्ध कराया जाने वाला फर्स्टएड बॉक्स का भी पता नहीं है। बसों का रंग भी सरकार की गाइड लाइन के विपरित है। जिसकी जैसी मर्जी उसने उसी आधार पर बसों की रंगाई-पोताई कराया हुआ है।
दिव्यांग और महिलाओं की आरक्षित सीट पर सफर कर रहे पुरुष
जिला परिवहन विभाग निजी और सिटी बसों की फिटनेस को लेकर गंभीर नहीं है और ना ही बसों में हो रहे यातायात के नियमों के पालन को लेकर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ठंड में जर्जर बसें सड़क पर दौड़ रही हैं। किसी बसों में खिड़की नहीं है, तो किसी में अन्य प्रकार की कमियां हैं। कई बसों की
खिड़कियां जाम हैं। इससे ठंड में जहां ठंडी हवाओं के बीच सफर करना पड़ रहा है वहीं बारिश और गर्मी के मौसम में पानी और गर्म हवाएं बस में घुसती है। इसका लोगाें के स्वास्थ्य पर विपरित प्रभाव पड़ने की आशंका बनी रहती है। कुछ बसें तो ऐसी है, जिसके पीछे कांच नहीं है और न ही साइड ग्लास है।
बसों में आगे और पीछे के लिखे नंबर मिट चुके हैं। इस कारण कई बसों का नंबर भी स्पष्ट नजर नहीं आता। इसके अलावा बसों के सीट फटे और पुरानें है। कई बसों के गेट के पैरदान के प्लेट भी उखड़े हुए हैं। इससे
यात्रियों को उतरते और चढ़ते समय चोट लगने की आशंका बनी रहती है। अधिकांश बसों में स्पीड गवर्नर, पेनिक बटन, अचानक आग लगने पर बुझा़ने के लिए अग्निशमन यंत्र नहीं हैं। बैक लाइट और इंटिकेटर की लाइटें तक खराब हो चुकी हैं।
कई बसों पर लिखे गए आपातकालीन नंबर लेकिन मालिक और ड्राइवर का नाम नहीं
परिचालन के दौरान बस के अंदर वाहन मालिक का नाम,
मोबाइल नंबर और वाहन क्रमांक का उल्लेख किया जाना है। लेकिन अधिकांश बसों में इन स्थानों की जगह का खाली छोड़ दिया गया है। इससे बस के अंदर सफर कर रहे यात्रियों को ना तो बस के मालिक का नाम पता चल पाता है और ना ही वाहन क्रमांक।
जिले में यातायात नियमों की अनदेखी हो रही है।
राष्ट्रीय राजमार्ग से लेकर राजकीय मार्गों, शहरी और ग्रामीण क्षेत्र की सड़कों पर अनफिट और जर्जर हो चुकी गाड़ियां फर्राटे भर रही हैं। कई बसों की खिड़कियां टूटी हुई हैं। सर्दी के मौसम में ठंडी हवा यात्रियों की ठिठुरन बढ़ा रही है। बसों में किराया सूची भी चस्पा नहीं है।
नया बस स्टैंड को ही बना दिया गैरेज
नया बस स्टैंड में पहले की अपेक्षा बसों की संख्या दो से तीन गुनी बढ़ गई है। कई स्थानों पर कबाड़ बसों को रख दिया गया है। इसकी वजह से जगह संकरा हो गया है। इसके बावजूद कई संचालक ने स्टैंड को गैरेज बना दिया है। बस स्टैंड में गाड़ियाें को खड़ी कर मरम्मत व टायर को बदला जाता है। फर्स्ट एड बॉक्स गायब
शहर में दौड़ रही अधिकांश निजी वाहनाें में फर्स्ट एड बॉक्स की सुविधा नहीं है। लगाए गए बॉक्स गायब हो गए हैं। ऐसे में दुर्घटना के दौरान किसी को जरूरी दवाईयाें की जरूरत हो तो उसे
अस्पताल तक पहुंचने के लिए इंतजार करना होगा।
शुल्क ले रहे, लेकिन नहीं काट रहे टिकट
बसों में यात्रियों से तमाम
सुविधाओं के नाम पर निर्धारित दूरी तक के किराया लिए जा रहे हैं। लेकिन सुविधाएं नहीं दी जा रही है। कई बसों में निर्धारित किराया से भी अधिक रुपए लिए जा रहे हैं। लेकिन इसके बदले दिए जाने वाले शुल्क का रसीद (बस टिकट) नहीं दिया जा रहा है। लेकिन निजी वाहनों संचालकों के मनमानी पर प्रशासन गंभीर नहीं है।
महिलाओं को खड़े होकर करना पड़ रहा सफर
बसों में नियमानुसार कुल सीटों की अपेक्षा लगभग 25 सीटों को
महिला दिव्यांग यात्रियों के लिए सुरक्षित किया जाना है। सुरक्षित सीटों के पास इसका उल्लेख भी किया जाना है। लेकिन इसका अधिकांश बसों में उल्लंघन हो रहा है। दिव्यांग और महिलाओं के सुरक्षित सीट पर पुरूष सफर कर रहे हैं और महिलाएं मजबूरी में खड़ी होंकर यात्रा कर रहीं हैं।