बकरी पालन से बनेगा रोजगार का रास्ता, SC वर्ग को मिलेगी नई उड़ान
शासन द्वारा जारी निर्देशों के तहत, फरीदाबाद की मेसर्स नोवा पब्लिकेशन एंड प्रिंटर्स को 50% कार्य का आवंटन किया गया था। 75 जिलों में निर्देश थे, 45 दिनों में पाठ्य पुस्तकें, 60 दिनों में कार्यपुस्तिकाएं उपलब्ध करानी हैं। पर 10 जून तक स्थिति यह है कि 52 लाख से अधिक बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। बरेली, लखीमपुर, सहारनपुर, बांदा, उन्नाव जैसे जिलों में वितरण बेहद धीमा और निर्धारित मानकों से पीछे है।पटरी से उतरी तबादला एक्सप्रेस: 1000 से ज्यादा तबादले रद्द, कर्मचारियों में नाराजगी
जिलेवार स्थिति, बरेली से लखनऊ तक
1 . बरेलीबरेली में अभी तक लगभग 5 लाख किताबें विद्यालयों तक पहुंच चुकी हैं, पर अपेक्षित से डेढ़ लाख की कमी बनी हुई है। २. लखीमपुर खीरी
यहाँ कुल 5,67,784 किताबों का ऑर्डर था, लेकिन अब तक एक भी पुस्तक या कार्यपुस्तिका नहीं मिली है।
पुस्तकों का 70% और कार्यपुस्तिकाओं का केवल 38% ही वितरित हो सका है। 4. बांदा
यहाँ 46% किताबें ही विद्यालयों तक पहुंची हैं। 5 . उन्नाव
ज़िला संयोजक बताते हैं कि एक भी किताब उपलब्ध नहीं हुई, साथ ही 1.5 लाख कार्यपुस्तिकाओं का वितरण तमाम है।
फिर लौटी बीएड की रौनक: सीटें घटीं, अभ्यर्थी बढ़े
47 जिलों में कार्यपुस्तिकाएं शून्य हैं, जिसमें प्रमुख हैं: आगरा, अमेठी, अयोध्या, बागपत, बांदा, बस्ती, बिजनौर, चंदौली, गाजियाबाद, गाजीपुर, गोरखपुर, गोंडा, झांसी, कन्नौज, कौशाम्बी, लखीमपुर, मथुरा, मुजफ्फरनगर, प्रयागराज, रायबरेली, सहारनपुर, सुलतानपुर, वाराणसी, उन्नाव आदि। इसमें कई पिछड़े और ग्रामीण जिलों की स्थिति बेहद गंभीर है।कितनी देरी है
यह देरी कोई नई समस्या नहीं है। समाचारों के अनुसार दिल्ली के सरकारी स्कूलों में भी महीनों तक किताबें नहीं पहुंची। यूपी में पिछले वर्षों में ठेके प्रक्रिया व विधानसभा चुनाव की मॉडल कोड की वजह से अगस्त या सितंबर तक डिलीवरी स्थगित हो चुकी है । इस बार भी बेसिक शिक्षा विभाग की रफ्तार अपेक्षाकृत धीमी रही है।7374 शिक्षकों का जून वेतन संकट में, मानव संपदा आईडी नहीं हुई ट्रांसफर
गुणवत्ता पर सवाल
फरीदाबाद की फर्म से मिली शिकायतों में यह साफ़ हुआ कि जो किताबें व कार्यपुस्तिकाएं वितरित की गई हैं, उनमें पुस्तक का कागज मानक के अनुरूप नहीं है। यह शिकायत कई जिलों, जैसे बरेली-अगरा आदि से मिल रही है।मौसम बना मुसीबत: अमौसी एयरपोर्ट से उड़ानें ठप
गूगल सीट ट्रैकिंग का अभाव
वितरण की मॉनीटरिंग के लिए जो गूगल सीट पोर्टल बनाया गया था, उस पर अभी तक नियमित अपडेट नहीं कराए गए हैं। यही कारण है कि कई जिलों में डेटा उपलब्ध नहीं और वितरण कार्य अधर में पड़ा है।लखनऊ को मिलेगा आधुनिक रोड नेटवर्क, जुलाई से शुरू होगा निर्माण
विभाग की प्रतिक्रिया
राज्य पाठ्यपुस्तक अधिकारी माधव तिवारी ने कहा कि “गूगल सीट पर अपडेट का कार्य जल्द पूरा किया जाएगा। प्रतिदिन डेटा अपडेट के निर्देश डीबीएमइएस के माध्यम से जिलाधिकारियों को भेजे जा रहे हैं।”- बीएसए बरेली के अनुसार, “5 लाख किताबें आ चुकी हैं, डेढ़ लाख और आने का इंतजार है।”
- बीएसए सहारनपुर की कोमल ने बताया कि “किताबें 70% और कार्यपुस्तिकाएं 38% वितरित हो पाईं।”
विशेषज्ञ और शिक्षाविद ने बताई वजह
- टेंडर की देरी – चुनावों की वजह से प्रक्रिया पिछड़ती है।
- प्रकाशन और छपाई में कोटिंग समस्या – कुछ फर्मों को प्रिंटिंग में समय लगता है।
- गुणवत्ता-कंट्रोल की कमी – कागज और मुद्रण दोनों में मानक अनदेखा।
- निगरानी तंत्र की कमी – गूगल सीट जैसे मॉनिटरिंग उपकरण उपयोग नहीं हो रहे।
- लॉजिस्टिक व ट्रांसपोर्ट – ग्रामीण इलाकों तक सामग्री समय पर नहीं पहुंची।
शिक्षक और अभिभावकों की स्थिति
कक्षा एक से तीन के बच्चे स्कूल तो जा रहे हैं पर उन्हें पुस्तकें ना मिलने से भारी शैक्षणिक रुकावट झेलनी पड़ रही है। शिक्षक मजबूरन वर्कशीट-आधारित शिक्षा दे रहे हैं, जबकि सूत्रों की मानें, ऐसी स्थिति का लगातार दो माह तक रहना बच्चों की सीख को प्रभावित करता है। बच्चों का कहना है कि“नया सत्र शुरू हुआ पर हमें किताब दें ही नहीं, पापा को नोट बनवाने पड़ रहे हैं।”लखनऊ को ट्रैफिक जाम से मिलेगी राहत, 1000 करोड़ की लागत से बनेंगे 46 नए ओवरब्रिज
राज्य सरकार और बेसिक शिक्षा विभाग ने जल्द सुधार के निर्देश जारी किए हैं:- गूगल सीट पोर्टल पर सप्ताह में दो बार अपडेट आवश्यक।
- बाहर छूटे सभी किताबें 15 दिनों के अंदर गिरोह उपज पर पहुंचाएं।
- टेंडर प्रक्रिया को शीघ्र अंतिम रूप दिया गया।
- कमजोर गुणवत्ता वाली फर्मों को नोटिस भेजा, आवश्यक सुधार हेतु निर्देश दिए गए।