‘यह राष्ट्र के लिए हानिकारक है’
उन्होंने कहा कि आज आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या है। एक सवाल उठ सकता है कि 50 साल पहले हुई किसी घटना पर अब चर्चा क्यों हो रही है? जब किसी राष्ट्रीय घटना के 50 साल पूरे होते हैं, चाहे वह अच्छी हो या बुरी, समाज में उसकी स्मृति धुँधली हो जाती है। अगर लोकतंत्र को हिला देने वाली आपातकाल जैसी घटना की स्मृति धुँधली हो जाती है, तो यह राष्ट्र के लिए हानिकारक है।
कल लॉन्च होगी पीएम मोदी की किताब
कार्यक्रम को संबोधित करते अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल पर एक किताब लिखी है। इस किताब को बुधवार को लांच किया जाएगा। यह आपातकाल के दौरान और उसके बाद हुए संघर्षों और घटनाक्रमों पर है।
इंदिरा-संजय के चुनाव हारने पर लोगों के चेहरे पर थी खुशी
अमित शाह ने कहा मुझे याद है, हम अपने गांव से, टाइम्स ऑफ इंडिया बिल्डिंग के सामने ट्रक में बैठकर लोकसभा चुनाव के नतीजे देख रहे थे। जब हमने देखा कि इंदिरा गांधी चुनाव हार गई हैं, तब सुबह के करीब 3 या 4 बजे थे, हमें पता चला कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी दोनों चुनाव हार गए हैं, हजारों लोगों के चेहरों पर जो खुशी थी, वो कुछ ऐसी है जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता।
इंदिरा गांधी ने आपातकाल किया लागू
उन्होंने कहा कि कई घटनाओं ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को हिला दिया। कोई राष्ट्रीय खतरा नहीं था। हमने बांग्लादेश के साथ युद्ध जीता था। कोई आंतरिक या बाहरी खतरा नहीं था। एकमात्र खतरा इंदिरा गांधी की स्थिति के लिए था। लोग जाग चुके थे और समझ गए थे कि उन्होंने भावनाओं में बहकर जो वोट दिए थे, उसका दुरुपयोग हो रहा है। इसे समझते हुए इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू कर दिया। सुबह 4 बजे कैबिनेट की बैठक बुलाई गई। बाबू जगजीवन राम और स्वर्ण सिंह ने बाद में कहा कि उनके साथ एजेंडे पर भी चर्चा नहीं की गई, उन्हें केवल सूचित किया गया, हाउस सेक्रेटरी को बुलाया गया और आगे के आदेश पारित किए गए।
इंदिरा गांधी को लेकर कही ये बात
‘आपातकाल के 50 साल’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “सुबह 8 बजे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर घोषणा की कि राष्ट्रपति ने आपातकाल लगा दिया है। क्या संसद की मंजूरी ली गई थी? क्या कैबिनेट की बैठक बुलाई गई थी? क्या विपक्ष को विश्वास में लिया गया था? जो लोग आज लोकतंत्र की बात करते हैं, मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि वे उस पार्टी से जुड़े हैं जिसने लोकतंत्र को खा लिया। कारण बताया गया राष्ट्रीय सुरक्षा, लेकिन असली कारण सत्ता की रक्षा थी। इंदिरा गांधी पीएम थीं, लेकिन उन्हें संसद में वोट देने का अधिकार नहीं था। प्रधानमंत्री के तौर पर उनके पास कोई अधिकार नहीं थे। उन्होंने नैतिकता का दामन छोड़ दिया और प्रधानमंत्री बने रहने का फैसला किया।