गौरतलब है कि 11 जुलाई 2006 की शाम 6:23 से 6:29 के बीच, मुंबई की पश्चिमी रेलवे लाइन पर 7 अलग-अलग लोकल ट्रेनों में पहले श्रेणी के डिब्बों में प्रेशर कुकरों में रखे विस्फोटक फटे। इन धमाकों में कम से कम 189 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 827 से अधिक लोग घायल हो गए थे। यह घटना देश की सबसे भीषण आतंकी घटनाओं में गिनी जाती है।
इस मामले में नवंबर 2006 में चार्जशीट दाखिल की गई थी और 2015 में मुंबई की विशेष टाडा अदालत ने 13 में से 12 आरोपियों को दोषी ठहराया था। इनमें से 5 को मृत्युदंड और 7 को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। इसके बाद सभी दोषियों ने हाईकोर्ट में अपील दायर की, जबकि महाराष्ट्र सरकार ने फांसी की सजा की पुष्टि के लिए याचिका दायर की थी।
जनवरी 2025 में अपीलों पर सुनवाई पूरी हुई और 21 जुलाई को करीब 19 साल बाद बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अपना फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति श्याम चांडक की खंडपीठ ने कहा कि अभियोजन द्वारा पेश किए गए साक्ष्य विश्वसनीय नहीं हैं। गवाहों की गवाही पर भरोसा नहीं किया जा सकता, और विस्फोट में इस्तेमाल हुए बम की गुत्थी तक जांच एजेंसी सुलझा नहीं कर सकी। ऐसे में बम, बंदूकें और नक्शे जैसे बरामद सबूतों का कोई ठोस अर्थ नहीं निकलता।
इसके चलते बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की फांसी की सजा की पुष्टि वाली याचिका भी खारिज कर दी। अदालत का यह फैसला येरवडा, नासिक, नागपुर और अमरावती जेलों में बंद आरोपियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनाया गया। सभी आरोपियों ने फैसले के बाद अपने वकीलों को धन्यवाद दिया।
मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस में 19 साल में क्या हुआ?
2006 में मुंबई लोकल ट्रेन धमाकों के बाद शहर के विभिन्न पुलिस थानों में सात अलग-अलग एफआईआर दर्ज की गई थीं। बाद में इन सभी मामलों की जांच महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते (ATS) को सौंप दी गई। जुलाई और अगस्त 2006 के दौरान एटीएस ने इस मामले में 13 लोगों को गिरफ्तार किया। 30 नवंबर 2006 को जांच एजेंसी ने 13 पाकिस्तानी नागरिकों समेत कुल 30 आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया, जिनमें कई अभी भी फरार हैं। इसके बाद 2007 में विशेष अदालत में मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई, जो कई सालों तक चली। 19 अगस्त 2014 को सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया। फिर 11 सितंबर 2015 को विशेष अदालत ने 13 में से 12 आरोपियों को दोषी ठहराया, जबकि एक आरोपी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। 30 सितंबर 2015 को अदालत ने पांच दोषियों को मृत्युदंड और सात को उम्रकैद की सजा सुनाई।
इस फैसले के खिलाफ अक्टूबर 2015 में महाराष्ट्र सरकार ने पांच दोषियों की फांसी की सजा की पुष्टि के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की। वहीं सभी 12 दोषियों ने अपनी सजा और दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दाखिल की। ये अपीलें वर्षों तक विभिन्न पीठों के समक्ष लंबित रहीं।
जून 2024 में, फांसी की सजा पाए आरोपी एहतेशाम सिद्दीकी ने अपीलों की शीघ्र सुनवाई के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में अर्ज़ी दी। इसके बाद जुलाई 2024 में हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति किलोर और न्यायमूर्ति चांडक की खंडपीठ का गठन किया। 15 जुलाई 2024 से इस पीठ ने अपीलों की रोजाना सुनवाई शुरू की।
31 जनवरी 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनवाई पूरी कर आदेश के लिए मामला सुरक्षित रखा और आज (21 जुलाई) धमाकों के 19 साल बाद सभी 12 दोषियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। साथ ही उन्हें जल्द से जल्द जेल से रिहा करने का आदेश भी दिया।