ईसबगोल की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए और उसका पीएच मान 6.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए। एग्रीकल्चर एक्सपर्ट बताते हैं, भूरी या बलुई मिट्टी में इसकी खेती करने से पहले उसमें गोबर की खाद या कम्पोस्ट जैसे जैविक खाद मिलाकर मिट्टी को उपजाऊ बनाना जरूरी है।
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उन्नत किस्मों का चयन जरूरी
ईसबगोल की खेती के लिए उन्नत किस्मों का बीज चुनना चाहिए। किसना पूसा उत्कर्ष, अर्का कार्तिक और पंत अनुपमा जैसी किस्में अधिक उपज देने के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक भी होती हैं। बीज बोने से पहले फफूंद नाशक दवा से उपचार करना चाहिए। बुवाई के समय बीजों को 30 से 45 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइनों में बोना उचित रहता है। फसल को समय-समय पर सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण और कीट प्रबंधन की जरूरत होती है।
कब करें ईसबगोल की बुवाई?
नागौर क्षेत्र में ईसबगोल की बुवाई के लिए अक्तूबर के आखिरी हफ्ते से नवंबर के दूसरे हफ्ते तक का समय सबसे अच्छा माना जाता है। किसान बताते हैं कि अगर बुवाई दिसंबर में कर दी जाए तो उपज में काफी कमी आ जाती है। यह एक धूप प्रभावित पौधा है, दिन की अवधि बढ़ने पर पौधा जल्दी पक जाता है और उत्पादन घट जाता है।
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कितनी होती है उपज और मुनाफा
-ईसबगोल की फसल पककर तैयार होने पर प्रति हेक्टेयर 80 से 100 क्विंटल तक उपज मिल सकती है।
-बाजार में इसकी कीमत 8,500 से लेकर 15,000 रुपये प्रति क्विंटल तक रहती है।
-इस तरह यह किसानों के लिए बेहद लाभकारी फसल साबित होती है।
-परंपरागत खेती की तुलना में इससे कहीं अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है।
-उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल कर उपज को और भी बढ़ाया जा सकता है।
-नागौर का मौसम और मिट्टी इसकी खेती के लिए बेहद अनुकूल माने जाते हैं।
खेती के लिए मिट्टी और देखभाल
ईसबगोल के लिए हल्की, बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जिसमें जलभराव न हो और जल निकासी अच्छी हो। मिट्टी में जीवांश की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए। उन्नत किसान बताते हैं कि खाद का संतुलित उपयोग इसकी उपज को बेहतर बनाता है। ठंडा और शुष्क मौसम इसकी खेती के लिए जरूरी है।
नागौर में इसी वजह से ईसबगोल की बड़े पैमाने पर खेती होती है, जिसने कई किसानों की किस्मत बदल दी है। उचित तकनीक, सही किस्म और सही समय पर बुवाई कर किसान इस औषधीय फसल से अच्छी आमदनी कमा सकते हैं।
किस काम आता है ईसबगोल
ईसबगोल में घुलनशील फाइबर होते हैं, जो पाचन तंत्र में मौजूद अतिरिक्त पानी को अवशोषित कर दस्त में राहत देते हैं। यह मल को गाढ़ा करता है और मलत्याग की आवृत्ति कम करता है। आयुर्वेदिक दवाओं में भी इसका उपयोग होता है और इसे एक महत्वपूर्ण औषधीय जड़ी-बूटी के रूप में जाना जाता है।