scriptSC के 279 जजों में से 32 के पारिवारिक संबंध, 52 मुख्य न्यायाधीशों में 6 रिश्तेदार, जस्टिस गवई 18वें फर्स्ट जनरेशन लॉयर जो बने CJI | 32 out of all 279 Supreme Court Judges six out of India's 51 CJI so far have had close family relations | Patrika News
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SC के 279 जजों में से 32 के पारिवारिक संबंध, 52 मुख्य न्यायाधीशों में 6 रिश्तेदार, जस्टिस गवई 18वें फर्स्ट जनरेशन लॉयर जो बने CJI

जस्टिस गवई देश के उन चुनिंदा न्यायाधीशों में से हैं, जो ‘फर्स्ट जनरेशन लॉयर’ हैं, यानी जिनके परिवार में पहले कोई वकील या न्यायाधीश नहीं रहा। भारत के 51 पूर्व सीजेआई में से 6 ऐसे रहे हैं जिनके रिश्तेदार भी इस सर्वोच्च पद पर रह चुके हैं।

भारतMay 14, 2025 / 12:03 pm

Siddharth Rai

भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई

जस्टिस संजीव खन्ना के 13 मई को रिटायर होने के बाद अब जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में बुधवार को पदभार संभाला है। जस्टिस गवई का यह पद ग्रहण सिर्फ एक प्रशासनिक बदलाव नहीं है, यह एक नई कहानी की शुरुआत है, जो उस ‘पहली पीढ़ी’ के वकील की है, जिसने कानूनी पेशे में कोई विरासत नहीं पाई, पर न्यायपालिका के सर्वोच्च पद तक पहुंचा।

फर्स्ट जनरेशन लॉयर हैं जस्टिस गवई

जस्टिस गवई देश के उन चुनिंदा न्यायाधीशों में से हैं, जो ‘फर्स्ट जनरेशन लॉयर’ हैं, यानी जिनके परिवार में पहले कोई वकील या न्यायाधीश नहीं रहा। यह दिलचस्प इसलिए भी है, क्योंकि अब तक भारत के 279 सुप्रीम कोर्ट जजों में से सिर्फ 104 (करीब 37%) ही ऐसे रहे हैं जो फर्स्ट जनरेशन लॉयर रहे रहे हैं। मुख्य न्यायाधीशों की बात करें, तो 52 में से केवल 18 सीजेआई ऐसे रहे हैं जिनका कोई न्यायिक पारिवारिक इतिहास नहीं था। जस्टिस गवई भी अब इस खास क्लब में शामिल हो गए हैं।

279 में से 32 ऐसे हैं जिनके रिश्तेदार न्यायाधीश रह चुके हैं

यह तथ्य चौंकाता है कि सुप्रीम कोर्ट में अब तक नियुक्त 279 न्यायाधीशों में से कम से कम 32 ऐसे हैं जिनके परिवार के अन्य सदस्य भी सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश रह चुके हैं। इतना ही नहीं, भारत के 51 पूर्व सीजेआई में से 6 ऐसे रहे हैं जिनके रिश्तेदार (पिता-पुत्र, चाचा-भतीजा आदि) भी इस सर्वोच्च पद पर रह चुके हैं। यह संकेत करता है कि भारतीय न्यायपालिका में एक ‘नेटवर्क इकोसिस्टम’ सक्रिय है, जहां कानूनी कौशल के साथ पारिवारिक संपर्क भी मायने रखते हैं।

संजीव खन्ना के चाचा जस्टिस हंसराज खन्ना भी रह चुके हैं न्यायाधीश

रिटायर हुए सीजेआई संजीव खन्ना का नाम भी न्यायिक वंशावली से जुड़ा है, उनके चाचा जस्टिस हंसराज खन्ना का नाम भारतीय न्यायिक इतिहास में एडीएम जबलपुर केस के संदर्भ में असहमति की मिसाल के तौर पर दर्ज है। 1976 में आपातकाल के दौरान, जब सुप्रीम कोर्ट की बहुमत पीठ ने सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि ‘हबीयस कॉर्पस’ जैसे अधिकार को निलंबित किया जा सकता है, तो जस्टिस हंसराज खन्ना इकलौते न्यायाधीश थे जिन्होंने इसका विरोध किया।
उनकी वह ऐतिहासिक असहमति आज भी न्यायिक स्वतंत्रता का नैतिक स्तंभ मानी जाती है। लेकिन उन्हें इसका खामियाजा बुगतना पड़ा और इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें मुख्य न्यायाधीश बनने से वंचित कर दिया, जबकि नियम और सीनियर होने के नाते उन्हें ही अगला सीजेआई बनाया जाना था।

जस्टिस गवई का सफर –

16 मार्च 1985 को वकालत की शुरुआत करने वाले जस्टिस गवई ने शुरू में नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के लिए स्थायी वकील के रूप में काम किया।
1992-1993: उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में सेवा दी।
17 जनवरी 2000: वे सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त किए गए।
14 नवंबर 2003: उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया।
12 नवंबर 2005: उन्होंने स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।
24 मई 2019: उन्हें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया।
दिसंबर 2023: वह सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को सर्वसम्मति से वैध ठहराया।

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