प्रैक्टिस करना या अस्पताल खोलना चौंकाने वाला
प्रदेश में दूसरे डॉक्टरों के लाइसेंस या पंजीयन पर प्रैक्टिस करना या अस्पताल खोलना चौंकाने वाला है। बिलासपुर वाले मामले में तो डॉक्टर का पंजीयन भी नहीं है। यह गंभीर मामला है। मामले की जांच करने पर पता चलेगा कि उक्त डॉक्टर की लापरवाही से कितने मरीजों की जान गई होगी। उसके गायब होने से मामला संदिग्ध भी हो गया है। अगर युवक जनरल सर्जरी एसोसिएशन में रजिस्ट्रेशन कराने नहीं पहुंचता तो मामले का खुलासा ही नहीं होता। सीएमएचओ के पास भी उक्त युवक के बारे में कोई जानकारी नहीं है। मामला सीजीएमसी में है। काउंसिल की पड़ताल में पता चला कि युवक का कोई रजिस्ट्रेशन नहीं है। ऐसे ही छुरा वाले मामले में एक डॉक्टर एमबीबीएस तो है, लेकिन एनेस्थेटिस्ट की डिग्री दूसरे डॉक्टर की है। यानी दूसरे डॉक्टर के रजिस्ट्रेशन पर डॉक्टर ने फेक पंजीयन सीजीएमसी में कराया है। इसलिए मामला गंभीर है।
साढ़े 16 हजार से ज्यादा रजिस्ट्रेशन, कितने मर गए, जानकारी नहीं
सीजीएमसी में वर्तमान में साढ़े 16 हजार से ज्यादा डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन है। इनमें से कई डॉक्टरों की मौत हो चुकी है। दरअसल जब से राज्य का गठन हुआ है, तब से काउंसिल में इन डॉक्टरों का पंजीयन है। अब 5 साल में पंजीयन में रिन्यूअल होने से मृत डॉक्टरों की जानकारी मिल जाएगी। इससे फेक प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों पर शिकंजा कसेगा। दूसरे के पंजीयन व बिना पंजीयन प्रैक्टिस करने वालों पर भी सख्ती होगी। एनएमसी के पत्र के बाद काउंसिल रिन्यूअल के नियम को सख्ती से लागू करेगा। पंजीयन कराने वालों में विदेश से एमबीबीएस पास डॉक्टर भी शामिल हैं। वे भी भारत में पढ़े एमबीबीएस छात्रों के समकक्ष हैं।
बच्ची की मौत पर पता चला कि डॉक्टर का पंजीयन ही नहीं
अंबिकापुर के एक फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट छात्र ने सीजीएमसी में पंजीयन नहीं कराया था। यह भी स्पष्ट नहीं हो सका है कि ये छात्र फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम (एफएमजीई) पास है भी नहीं। दरअसल वहां एक निजी अस्पताल में ब्लड ट्रांसफ्यूजन के दौरान एक बच्ची की मौत हो गई। जांच के बाद पता चला कि विदेश से पढ़ा डॉक्टर बच्ची का इलाज कर रहा था। यह मामला भी काउंसिल पहुंचा था। बच्ची के पिता ने डॉक्टर पर लापरवाही का आरोप लगाया था।