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अनुच्छेद 370 से लेकर नोटबंदी जैसे मामलों पर सुनवाई करने वाले BR गवई बनेंगे भारत के 52वें CJI, अब तक लिए ये बड़े फैसले

Justice BR Gavai new CJI: भारत सरकार ने जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई को देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में नियुक्त किया है। वह 14 मई को पदभार ग्रहण करेंगे और 23 दिसंबर तक इस पद पर रहेंगे।

भारतApr 30, 2025 / 01:04 pm

Devika Chatraj

जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई (बी.आर. गवई) 14 मई 2025 से भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में कार्यभार संभालेंगे। उनकी नियुक्ति मौजूदा CJI जस्टिस संजीव खन्ना की सिफारिश और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद 29 अप्रैल 2025 को हुई। जस्टिस गवई, जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन के बाद देश के दूसरे दलित CJI होंगे। उनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक, यानी लगभग छह महीने का होगा। अनुच्छेद 370, नोटबंदी जैसे ऐतिहासिक मामलों में उनकी भूमिका और अन्य बड़े फैसलों ने उन्हें एक प्रभावशाली न्यायाधीश के रूप में स्थापित किया है। नीचे उनके प्रमुख फैसलों का विवरण दिया गया है।

प्रमुख फैसले

जस्टिस गवई ने सुप्रीम कोर्ट में कई संवैधानिक और सामाजिक महत्व के मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके कुछ उल्लेखनीय फैसले निम्नलिखित हैं।

अनुच्छेद 370 (जम्मू-कश्मीर)
दिसंबर 2023 में, जस्टिस गवई पांच जजों वाली संवैधानिक बेंच का हिस्सा थे, जिसने केंद्र सरकार द्वारा 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा। इस फैसले ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा समाप्त करने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने की संवैधानिकता को मंजूरी दी। यह भारत के प्रशासनिक और राजनीतिक ढांचे में एक ऐतिहासिक बदलाव था।
नोटबंदी (2016)
जनवरी 2023 में, जस्टिस गवई उस पांच जजों वाली संवैधानिक बेंच में शामिल थे, जिसने केंद्र सरकार के 8 नवंबर 2016 को 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को 4:1 के बहुमत से संवैधानिक ठहराया। इस फैसले ने नोटबंदी की प्रक्रिया और इसके उद्देश्यों (काले धन और नकली मुद्रा पर अंकुश) को वैध माना।
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना
2023 में, जस्टिस गवई पांच जजों वाली बेंच का हिस्सा थे, जिसने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित कर रद्द कर दिया। इस योजना के तहत राजनीतिक दलों को गुमनाम चंदा मिलता था, और इस फैसले ने राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया।
बुलडोजर कार्रवाई
2024 में, जस्टिस गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने अवैध निर्माण या दंडात्मक कार्रवाई के नाम पर बुलडोजर से संपत्ति ध्वस्त करने के खिलाफ देशव्यापी दिशानिर्देश जारी किए। फैसले में अनिवार्य नोटिस और 15 दिन के अंतराल की शर्त रखी गई, जिसने कार्यपालिका की मनमानी पर अंकुश लगाया।
राजीव गांधी हत्याकांड
2022 में, जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने राजीव गांधी हत्याकांड के छह दोषियों को 30 साल से अधिक की सजा के बाद रिहा करने का आदेश दिया। यह फैसला तमिलनाडु सरकार की रिहाई की सिफारिश और राज्यपाल की निष्क्रियता के आधार पर लिया गया।
अनुसूचित जाति में उप-वर्गीकरण
2024 में, जस्टिस गवई सात जजों वाली बेंच का हिस्सा थे, जिसने अनुसूचित जाति के आरक्षण में उप-वर्गीकरण को मंजूरी दी। अपने अलग फैसले में, उन्होंने सुझाव दिया कि आर्थिक रूप से संपन्न अनुसूचित जाति समुदायों को स्वेच्छा से आरक्षण छोड़ना चाहिए, जो सामाजिक न्याय की दिशा में एक नई चर्चा को प्रेरित करता है।
मोदी सरनेम केस
जस्टिस गवई उस बेंच में शामिल थे, जिसने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को ‘मोदी सरनेम’ मामले में राहत दी। इस फैसले ने उनकी सजा पर रोक लगाई, जिसके बाद उनकी लोकसभा सदस्यता बहाल हुई।
स्टैंप एक्ट
जस्टिस गवई सात जजों वाली बेंच का हिस्सा थे, जिसने फैसला दिया कि स्टैंप एक्ट के तहत बिना स्टैंप ड्यूटी वाले समझौते अवैध हैं। यह वाणिज्यिक और कानूनी लेनदेन में स्पष्टता लाने वाला फैसला था।
पर्यावरण संरक्षण
जस्टिस गवई ने हैदराबाद के कंचा गचीबाउली में 100 एकड़ जंगल को नष्ट करने के मामले में सख्त रवैया अपनाया। वे वन संरक्षण से संबंधित मामलों की सुनवाई करने वाली बेंच के प्रमुख रहे, जिसने पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी।

न्यायिक पृष्ठभूमि

प्रारंभिक करियर: जस्टिस गवई ने 1985 में वकालत शुरू की और 2003 में बॉम्बे हाईकोर्ट के जज बने। 24 मई 2019 को वे सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए।

विशेष योगदान: जस्टिस गवई ने संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता दिखाई। उन्होंने कहा, “मैं डॉ. बी.आर. अंबेडकर के कारण सुप्रीम कोर्ट का जज हूं।”
दलित प्रतिनिधित्व: दूसरे दलित CJI के रूप में उनकी नियुक्ति सामाजिक समावेशन का प्रतीक है।

वर्तमान संदर्भ

जस्टिस गवई का कार्यकाल छोटा (6 महीने) होने के बावजूद महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 जैसे संवेदनशील मामलों की सुनवाई कर रहा है। उनकी निष्पक्षता और संवैधानिक दृष्टिकोण की प्रशंसा केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भी की।

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