क्या है पूरा मामला?
यह मामला मेसर्स राधा कृष्ण एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक रतन कुमार केडिया और पंडौल कोऑपरेटिव सूता मिल के बीच 1996-97 में हुए एक करार से जुड़ा है। पंडौल की यह सूता मिल सरकार की देखरेख में चलती थी, जो बाद में बंद हो गई। बंद होने के बाद, कोलकाता स्थित कंपनी ने मिल को पुनः संचालन में लाने के लिए पूंजी और कच्चा माल उपलब्ध कराने का करार किया, जबकि मजदूर और संचालन की जिम्मेदारी सरकार और मिल प्रबंधन की थी।
न्यायिक आदेश और अवमानना
यह मामला बाद में विवाद में बदल गया और वर्ष 2014 में पटना हाई कोर्ट के तत्कालीन न्यायमूर्ति घनश्याम प्रसाद ने आर्बिट्रेशन प्रक्रिया के तहत फैसला सुनाया। आदेश के अनुसार, केडिया की कंपनी को 28.90 लाख रुपये एडवांस भुगतान, 2 लाख रुपये क्षतिपूर्ति, 70 हजार रुपये मुकदमा खर्च, तथा 1.80 लाख रुपये आर्बिट्रेटर शुल्क के रूप में भुगतान किया जाना था। भुगतान में विफल रहने की स्थिति में 18% वार्षिक ब्याज के साथ राशि चुकाने का भी आदेश था। प्रशासनिक चूक बनी परेशानी
हालांकि इस आदेश का पालन नहीं किया गया। इसके बाद 2016 में रतन कुमार केडिया ने मधुबनी जिला जज की अदालत में आदेश के अनुपालन हेतु याचिका दायर की। लगातार उपेक्षा के बाद अब कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए समाहरणालय परिसर की संपत्ति को नीलाम करने का आदेश दिया है। अदालत ने निर्देश दिया है कि एसपी कार्यालय परिसर में नीलामी की नोटिस चिपकाई जाए।