PM को खरगे के तीन सुझाव
प्रश्नावली का डिजाइन और तेलंगाना मॉडल का उपयोग: खरगे ने सुझाव दिया कि
जनगणना की प्रश्नावली को केवल गिनती तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि यह व्यापक सामाजिक-आर्थिक आंकड़े जुटाने में सक्षम होनी चाहिए। इसके लिए तेलंगाना में हाल ही में किए गए जातिगत सर्वेक्षण को मॉडल के रूप में अपनाया जा सकता है।
पारदर्शिता और आंकड़ों का प्रकाशन: जनगणना के अंत में सभी जातियों के सामाजिक-आर्थिक आंकड़े सार्वजनिक किए जाएं, ताकि प्रत्येक जाति की प्रगति को मापा जा सके और उन्हें संवैधानिक अधिकार सुनिश्चित किए जा सकें।
आरक्षण सीमा हटाने के लिए संवैधानिक संशोधन: खरगे ने मांग की कि ओबीसी, एससी, और एसटी के लिए आरक्षण पर 50% की सीमा को हटाने के लिए संविधान संशोधन किया जाए। साथ ही, राज्यों द्वारा पारित आरक्षण कानूनों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।
कैबिनेट बैठक फैसला
केंद्र सरकार ने 30 अप्रैल 2025 को कैबिनेट बैठक में आगामी जनगणना में जातिगत जनगणना को शामिल करने का फैसला किया था। इस घोषणा के बाद से इस मुद्दे पर राजनीतिक बहस तेज हो गई है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इसे अपनी जीत के रूप में देख रहे हैं, क्योंकि उन्होंने लंबे समय से इसकी मांग की थी। खरगे ने अपने पत्र में यह भी कहा कि वह चाहते हैं कि सरकार इस प्रक्रिया को जल्द शुरू करे और इसके लिए बजट प्रावधान करे। उन्होंने जोर दिया कि यह कदम सामाजिक न्याय की नींव को मजबूत करेगा।
विपक्ष और सरकार के बीच क्रेडिट की जंग
जातिगत जनगणना के फैसले के बाद विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस, और सत्तारूढ़ बीजेपी के बीच श्रेय लेने की होड़ मची है। बीजेपी का दावा है कि यह निर्णय सामाजिक समावेश और विकास के लिए लिया गया है, जबकि कांग्रेस इसे राहुल गांधी और विपक्ष के दबाव का नतीजा बता रही है। खरगे ने अपने पत्र में पीएम से आग्रह किया कि वह सभी दलों के साथ इस मुद्दे पर तुरंत चर्चा करें ताकि एक समग्र और पारदर्शी नीति बनाई जा सके।