क्या है पूरा मामला?
जानकारी के अनुसार, आरोपी मौलवी, जो एक मदरसे में शिक्षक था, ने बच्ची को बहला-फुसलाकर उसके साथ यौन शोषण किया। उसने बच्ची को सोने की अंगूठी देकर लालच दिया और उसका भरोसा जीतने की कोशिश की। इस घिनौने कृत्य के बाद मामला तब सामने आया, जब बच्ची ने अपने परिजनों को
आपबीती सुनाई। परिजनों ने तुरंत पुलिस में शिकायत दर्ज की, जिसके बाद आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया।
पुलिस और कानूनी कार्रवाई
पुलिस ने मामले की गहन जांच शुरू की और पर्याप्त सबूतों के आधार पर आरोपी के खिलाफ पॉक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज) एक्ट के तहत केस दर्ज किया। जांच में यह भी सामने आया कि आरोपी ने बच्ची के साथ कई बार गलत हरकत की थी। पुलिस ने मामले को तेजी से अदालत में पेश किया, जहां सुनवाई के दौरान पीड़िता की गवाही और सबूतों ने आरोपी की करतूत को पूरी तरह उजागर कर दिया।
अदालत का ऐतिहासिक फैसला
कन्नूर की विशेष पॉक्सो अदालत ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए आरोपी मौलवी को विभिन्न धाराओं के तहत कुल 187 साल की सजा सुनाई। हालांकि, भारतीय कानून के अनुसार, सजा की अधिकतम अवधि आजीवन कारावास तक सीमित हो सकती है, लेकिन इतनी लंबी सजा का ऐलान समाज में अपराधियों के लिए चेतावनी है। अदालत ने यह भी सुनिश्चित किया कि पीड़िता को उचित सहायता और मुआवजा प्रदान किया जाए।
बच्चों की सुरक्षा जरुरी
इस फैसले ने न केवल स्थानीय समुदाय बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। लोग इस बात पर जोर दे रहे हैं कि बच्चों की सुरक्षा के लिए और सख्त कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही, धार्मिक और शैक्षिक संस्थानों में बच्चों के साथ होने वाले शोषण पर नकेल कसने की मांग उठ रही है। यह मामला एक बार फिर समाज को यह सोचने पर मजबूर करता है कि बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा कितनी जरूरी है।