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अब बदले की बारी! कांग्रेस के रवैये से केजरीवाल को पहुंची थी ठेस

Delhi Assembly Elections 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए आप ने सभी 70 सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर उन सभी चर्चाओं पर विराम लगा दिया है जो कांग्रेस के साथ उसके गठबंधन की संभावनाएं थी। पढ़िए डॉ. मीना कुमारी की खास रिपोर्ट…

नई दिल्लीDec 17, 2024 / 08:55 am

Shaitan Prajapat

Delhi Assembly Elections 2025: आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी (आप) ने सभी 70 सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर उन सभी चर्चाओं पर विराम लगा दिया है जो कांग्रेस के साथ उसके गठबंधन की संभावनाओं को लेकर हवा में तैर रही थी। इससे यह भी साफ हो गया कि आप हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के रवैये से पहुंची टीस को नहीं भूली और उसने दिल्ली में इसका बदला चुका दिया।

कांग्रेस से ठुकराया था आप का समझौता

हरियाणा विधानसभा में खाता खोलने की प्रबल इच्छा के चलते आप वहां कांग्रेस से चुनावी समझौता करने के लिए उत्साहित थी लेकिन चुनाव पूर्व अति आत्मविश्वास में भरी कांग्रेस ने उसे ठुकरा दिया। यह बात दीगर है कि नतीजों ने कांग्रेस के आत्मविश्वास को चूर-चूर कर दिया और आप की झोली भी खाली रह गई। नतीजे चाहे जो भी रहे हों, मगर आप के दिल में कांग्रेस के इस अहंकार की टीस रह गई।

‘आप’ ने चुका दिया हरियाणा का बदला

समय का चक्र घूमा। कुछ महीने बाद ही दिल्ली विधानससभा के चुनाव आ गए। दिल्ली की राजनीति पिछले दशक में ‘आप’ के प्रभुत्व में रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में ‘आप’ ने 70 में से 62 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा ने 8 सीटों पर संतोष किया। कांग्रेस दोनों चुनावों में लगातार खाता खोलने में नाकाम रही। यहां कांग्रेस की जरूरत थी कि वह आप के सहारे दिल्ली की अपनी खोई हुई जमीन में से कोई छोटा सा टुकड़ा फिर से हासिल कर सके। लेकिन यहां गेंद आप के पाले में थी। अरविंद केजरीवाल ने शुरुआती दौर में ही सभी 70 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे और इसके साथ ही यह संदेश भी दे दिया था कि ताली एक हाथ से नहीं बजती। दो चुनावों में निर्विवाद और प्रचंड विजेता रही आम आदमी पार्टी के सामने इस बार चुनौतियों का पहाड़ है। दस साल के लगातार शासन के बाद और कई चुनावी वादों के पूरे न होने या आधे-अधूरे पूरे होने पर उसे मतदाताओं के एक हिस्से की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। इस चुनौती के बावजूद केजरीवाल ने अकेले चुनाव लड़ने का जोखिम लिया।
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अकेले चुनाव लड़ने के जोखिम के पीछे आप का अपना गणित है। आप भली-भांति जानती है कि पिछले एक दशक में दिल्ली में कांग्रेस की जमीन पूरी तरह से खिसक चुकी है। दिल्ली की राजनीति पूरी तरह भाजपा और आप के बीच द्विध्रुवीय हो चुकी है। कभी कांग्रेस का ठोस आधार रहा मलिन बस्तियों का मतदाता आज मजबूती से आप के साथ खड़ा है। केजरीवाल जानते हैं कि यदि कांग्रेस के साथ गठबंधन कर उसे जीवनदान देने की कोशिश की गई तो वह भविष्य में उसके लिए ही भस्मासुर साबित हो सकती है। कांग्रेस का पुनः उभार इन मतदाताओं में फिर कांग्रेस के प्रति सहानुभूति पैदा कर सकता है। लिहाजा इससे पहले कि अमरबेल पेड़ पर चढ़कर पेड़ को ही सुखाने का कारण बने, अमरबेल को पैदा ही न होने दो। केजरीवाल के इस सधे हुए निर्णय से हरियाणा की टीस भी मिट गई और दूर की रणनीति भी सध गई।

आप ने 20 मौजूदा विधायकों को काटे टिकट

उधर, कांग्रेस अब आप के टिकट से वंचित मौजूदा विधायकों पर आस लगाए हुए है और इनमें से कई विधायक कांग्रेस पर। आप ने 20 मौजूदा विधायकों के टिकट काटे हैं। इससे नाराज कुछ विधायक टिकट की आस में कांग्रेस के खेमे में जा सकते हैं। दिल्ली में लगातार दो चुनावों में विफल रही कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। अगर इनमें से कुछ मौजूदा विधायकों के सहारे वह एक दशक बाद विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा ले तो यह उसके लिए बड़ी उपलब्धि होगी। हो सकता है अपने जनाधार के चलते इनमें से कुछ जीत भी जाएं। अगर जीत न भी सकें, फिर भी ये आप का खेल जरूर खराब कर सकते हैं।
दूसरी तरफ, भाजपा मन ही मन इस पर मुदित है। जहां-जहां बागी विधायक किसी रूप में आप का खेल खराब करेंगे और भाजपा की राह सुगम होगी।

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