ये सूंघ रहे बच्चे
पेंट, पेंट थिनर। गोंद, रबर की गोंद। ऐरोसोल स्प्रे (Deodorants, Hairsprays)। नाइट्रस ऑक्साइड (Nitrous oxide – Laughing gas) डीजल और पेट्रोल।
भारत में कुल 77 लाख लोग इनहेलेंट्स का प्रयोग कर रहे
जानकारी के अनुसार भारत में 10–17 वर्ष के लगभग 1.7% बच्चे और किशोर, यानी करीब 18 लाख युवा, सूंघने वाली दवाओं (Inhalants) के आदी हैं, जबकि वयस्कों में यह दर केवल 0.58% है। सन 2017–18 के राष्ट्रीय सर्वे के अनुसार, भारत में कुल 77 लाख लोग इनहेलेंट्स का प्रयोग कर रहे हैं, जिनमें से 20 लाख से अधिक समस्याग्रस्त उपयोगकर्ता हैं। वैश्विक स्तर पर, अमेरिका में हर साल 5.9 लाख किशोर इनहेलेंट्स का सेवन शुरू करते हैं और 1.1 मिलियन (11 लाख) किशोर हर वर्ष इसका उपयोग करते हैं। यूरोप में 12–16 वर्ष के लगभग 20% युवा इनहेलेंट्स का सेवन कर चुके हैं। पाकिस्तान के कराची में 80–90% स्ट्रीट बच्चे गोंद या सॉल्वेंट्स का नशा करते हैं, जबकि केन्या के नैरोबी शहर में लगभग 60,000 बच्चे ऐसे नशे के आदी हैं। ये आंकड़े दिखाते हैं कि यह एक वैश्विक संकट है, जिसमें भारत भी बुरी तरह शामिल है।
क्या कारण हैं सूंघने वाली दवाओं के नशे की ओर बच्चों का झुकाव ?
आसान उपलब्धता: इन पदार्थों की अधिकतर चीजें बच्चों के घरों में मौजूद होती हैं, जैसे कि गोंद, पेंट, स्प्रे आदि। यह चीजें बिना किसी बड़ी रोक-टोक के बच्चों के हाथों में पहुंच जाती हैं। कम लागत: सूंघने वाली दवाओं का नशा महंगा नहीं होता। बच्चों को पैसों की कमी महसूस नहीं होती क्योंकि ये पदार्थ घरों में पहले से ही मौजूद होते हैं। तुरंत प्रभाव: सूंघने वाली दवाओं का असर तुरंत होता है, जिससे बच्चों को तत्काल “हाई” का अनुभव होता है। यह उन्हें आकर्षित करता है।
समय की कमी और ध्यान आकर्षित करने की इच्छा: कई बार बच्चों को परिवार और दोस्तों से पर्याप्त ध्यान नहीं मिलता और इस वजह से वे इस तरह के खतरनाक रास्ते अपनाते हैं।
सुख-सुखकारी नशे के तत्काल प्रभाव
बच्चों को सूंघने वाली दवाओं के नशे से कुछ बेहद खतरनाक और तुरंत प्रभाव देखने को मिलते हैं: गहरी नशे की लत: इस नशे की लत इतनी तेजी से लग सकती है कि बच्चे बिना सोचे-समझे बार-बार इसका सेवन करते हैं। स्वास्थ्य पर असर: सूंघने वाली दवाओं से बच्चों का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। यह नर्वस सिस्टम, मस्तिष्क और अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके अलावा, बच्चों के व्यवहार में भी बदलाव आ सकता है।
मृत्यु का खतरा: यदि बच्चे अधिक मात्रा में इस नशे को सूंघते हैं तो यह गंभीर परिणाम भी उत्पन्न कर सकता है, जैसे कि दिल की धड़कन रुकना, ब्रेन डेमेज और यहां तक कि मृत्यु।
दवाइयां सूंघना, बीमारी के लक्षण और संकेत
यदि कोई बच्चा सूंघने वाली दवाओं का सेवन कर रहा है, तो कुछ लक्षण देखे जा सकते हैं: चक्कर आना और सिरदर्द। बेहोशी की हालत। चेहरे पर लालिमा या जलन। नशे की स्थिति में अत्यधिक खुश या अव्यवस्थित व्यवहार। नाक और मुंह के आसपास दवाओं के निशान। आंखों में धुंधलापन या पानी बहना।
दवाइयां सूंघने के सामाजिक और मानसिक प्रभाव
इसके अलावा, सूंघने वाली दवाओं के नशे से बच्चों का सामाजिक जीवन और मानसिक स्थिति भी प्रभावित हो सकती है। शैक्षिक प्रदर्शन में गिरावट: बच्चों का ध्यान केंद्रित करने की क्षमता घट सकती है, जिससे उनके पढ़ाई में मनोबल गिर सकता है। आत्म-विश्वास में कमी: मानसिक तौर पर यह नशा बच्चों को कमजोर बना सकता है, और वे अपनी पहचान को लेकर भ्रमित हो सकते हैं।
आक्रामक व्यवहार: नशे के प्रभाव से बच्चों में आक्रामक और हिंसक प्रवृत्तियाँ भी देखने को मिल सकती हैं।
कैसे रोकें सूंघने वाली दवाओं का नशा?
इस गंभीर समस्या को रोकने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं: प्रेरणा और जागरूकता अभियान: स्कूलों, कॉलेजों और समुदायों में इस विषय पर जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए। बच्चों को इसके खतरों के बारे में बताया जाए। परिवार का सहयोग: माता-पिता को बच्चों के व्यवहार पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें सही मार्गदर्शन देना चाहिए।
पुलिस और सरकार की पहल: बच्चों को सूंघने वाली दवाओं से बचाने के लिए सरकार को कड़े कानून और नियम बनाने चाहिए। साथ ही, पुलिस को इन दवाओं के अवैध व्यापार पर निगरानी रखने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।
व्यसन उपचार केंद्र: बच्चों के लिए व्यसन से छुटकारा पाने के लिए केंद्र खोले जाने चाहिए, जहां वे बिना किसी हिचकिचाहट के मदद ले सकें।
नशीली दवाइयां सूंघने से यह सीधे दिमाग पर असर
प्रख्यात न्यूरो चिकित्सक डॉ नगेंद्र शर्मा ने संपर्क करने पर बताया कि नशीली दवाइयां सूंघने से यह सीधे दिमाग पर असर डालती है। दरअसल, मस्तिष्क में मौजूद हिप्पोकैम्पस सिस्टम गंध को पहचानता है और उसे याद रखने की क्षमता रखता है। लेकिन जब कोई व्यक्ति नशीली दवाएं सूंघता है, तो यह प्रणाली प्रभावित हो जाती है। उसकी सक्रियता कम हो जाती है, जिससे व्यक्ति की गंध पहचानने की क्षमता घट जाती है।
दिमाग में घुसी गैस डॉक्टर भी नहीं निकाल सकता
उन्होंने बताया कि इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति चिड़चिड़ा, हिंसक और असामान्य व्यवहार करने लगता है। ये नशीली चीज़ें, जैसे कि एयरोसोल, मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाती हैं और व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से निष्क्रिय हो जाता है। इससे डिप्रेशन, एंग्जायटी, स्मृति हानि, मानसिक विकृति, लकवा तक हो सकता है। व्यक्ति आत्मघाती प्रवृत्ति का शिकार भी हो सकता है या फिर अपराध की ओर भी मुड़ सकता है। एक बात अहम है कि अगर कोई व्यक्ति कोई चीज खा ले तो उल्टी करवा कर उसके पेट से वह चीज निकलवाई जा सकती है, लेकिन दिमाग में घुसी गैस डॉक्टर भी नहीं निकाल सकता।
सूंघने वाली दवाइयों का नशा बच्चों और किशोरों के लिए खतरनाक
बहरहाल सूंघने वाली दवाओं का नशा बच्चों और किशोरों के लिए खतरनाक रास्ता है, जो उनकी सेहत को स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है। यह नशा केवल शारीरिक ही नहीं, मानसिक और सामाजिक स्तर पर भी प्रभाव डालता है। इस समस्या को रोकने के लिए परिवार, समाज, स्कूल, और सरकार को मिलकर काम करना होगा ताकि बच्चों को इस नशे की आदत से बचाया जा सके और उनका भविष्य सुरक्षित रखा जा सके।