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‘ब्लैक स्पॉट’ त्राल: बुरहान से आदिल तक, आतंक का गढ़ रहा पुलवामा

Pulwama remained stronghold of terror: पुलवामा जिले का त्राल, विशेष रूप से अवंतीपुरा क्षेत्र, जम्मू-कश्मीर का एक अत्यंत संवेदनशील इलाका रहा है, जो लंबे समय तक आतंकवादी गतिविधियों का गढ़ बना रहा।

जम्मूMay 19, 2025 / 09:37 am

Shaitan Prajapat

Burhan Wani, Sabzar Ahmad Bhat, Zakir Moosa

Pulwama remained stronghold of terror: पुलवामा जिला और यहां के अवंतीपुरा का त्राल जम्मू-कश्मीर का एक संवेदनशील क्षेत्र है जहां से कई कुख्यात आतंकवादी निकले हैं। यह इलाका विशेष रूप से आतंकवादी संगठनों जैसे हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा, और जैश-ए-मोहम्मद की एक्टिविटीज के लिए फेवरेट जगह रहा है। यहां से बुरहान वानी, सबजार भट, जाकिर मूसा और आदिल डार जैसे कुख्यात आतंकी निकले, जिन्होंने घाटी में हिंसा और उग्रवाद को बढ़ावा दिया। हालांकि अब सुरक्षा बलों और सरकार के प्रयासों से हालात बदल रहे हैं और लोग मुख्यधारा में लौटने लगे हैं।

1 बुरहान वानी (1994-2016)

बुरहान वानी त्राल के ददसारा गांव का निवासी था और हिजबुल मुजाहिदीन का कमांडर था। वह सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने के कारण युवाओं के बीच लोकप्रिय हो गया और कश्मीर में आतंक का चेहरा बन गया। 2016 में उसकी मौत के बाद घाटी में बड़े पैमाने पर हिंसा और विरोध प्रदर्शन हुए थे।

2 सबजा अहमद भट (मृत्यु: 2017)

सबजार भट त्राल के रथसूना गांव का निवासी था और बुरहान वानी का करीबी सहयोगी था। बुरहान की मौत के बाद वह हिजबुल मुजाहिदीन का कमांडर बना। 2017 में त्राल में एक मुठभेड़ में उसकी मौत हुई।

3 जाकिर मूसा (1994-2019)

जाकिर मूसा, जिसका असली नाम जाकिर राशिद भट था, त्राल के नूरपोरा गांव का रहने वाला था। वह पहले हिजबुल मुजाहिदीन से जुड़ा था, लेकिन बाद में अल-कायदा से संबद्ध रखने वाला अंसार गजवत-उल-हिंद का प्रमुख बना। 2019 में त्राल के ददसारा गांव में एक मुठभेड़ में उसकी मौत हुई।
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4 रियाज नाइकू, मृत्यु: 2020

रियाज नाइकू बेगपोरा, पुलवामा का रहने वाला था। यह हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकवादी था। यह संगठन का टॉप कमांडर था। 2020 में एक ऑपरेशन के दौरान मार गिराया गया।
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5 अदील अहमद डार

आदिल अहमद डार, काकापोरा गांव, डिस्ट्रिक्ट पुलवामा का रहने वाला था। यह जैश-ए-मोहम्मद के साथ जुड़ा हुआ था। 14 फरवरी 2019 को सीआरपीएफ के काफिले पर आत्मघाती हमला किया था जिसमें 40 जवान शहीद हुए थे।

आंखों-देखी: आतंकियों को शहीद बताने वाले शांति के पक्षधर नहीं हो सकते

कश्मीर के आतंक से ग्रसित जिलों में सरकार, सेना और पुलिस के संयुक्त प्रयासों से बदलाव की बयार महसूस की जा सकती है। मुख्यधारा या आतंकवाद से पीडि़त जगहों या समुदायों को विकास के रास्ते पर लाकर उन्हें समाज की मुख्यधारा के साथ जोडऩा ही समाधान का एक बड़ा विकल्प है। पुलवामा जिले के अवंतीपुरा-त्राल क्षेत्र जो पूरी तरह मिलिटेंसी के कब्जे में था, वहां अब बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो इस सब से बाहर आकर कमाई, परिवार के विकास और सुरक्षा के बारे में सोचने लगे हैं। बच्चे पढ़ाई-लिखाई में भी दिलचस्पी लेने लगे हैं। वहीं, दूसरी तरफ अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग मौजूद हैं जो आतंकियों को शहीद और उनसे जुड़े लोगों को फ्रीडम फाइटर कहते हैं।

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