जयशंकर के बयान से तिलमलाया
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शफकत अली खान ने जयशंकर के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए एक औपचारिक बयान जारी किया। उनका कहना था कि भारत को कश्मीर को लेकर “आधारहीन दावे” करने से बचना चाहिए और इसके बजाय जम्मू-कश्मीर के उस बड़े हिस्से को छोड़ देना चाहिए, जिस पर वह पिछले 77 साल से “अवैध रूप से कब्जा” जमाए बैठा है। शफकत ने जयशंकर के उस दावे को सिरे से नकार दिया, जिसमें उन्होंने PoK को भारत का अभिन्न हिस्सा बताया और इसकी वापसी को कश्मीर समस्या के समाधान का अंतिम चरण करार दिया। उनके शब्दों में गुस्सा और असहमति साफ झलक रही थी, जब उन्होंने कहा कि “हम चैथम हाउस में जयशंकर के बयान को पूरी तरह खारिज करते हैं।” पाकिस्तान ने फिर अलापा अनुच्छेद 370 का राग
शफकत ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए तर्क दिया कि PoK का मसला “विवादित” है और जयशंकर इसे लेकर “गलत बयानबाजी” कर रहे हैं। उन्होंने भारत पर आरोप लगाया कि उसने सैन्य ताकत के बल पर जम्मू-कश्मीर का स्टेटस बदलने की कोशिश की है, लेकिन यह कदम न तो “वास्तविकता को बदल सकता है” और न ही कश्मीरी लोगों की समस्याओं का हल कर सकता है। उनके लहजे में एक गहरी नाराजगी थी, जब उन्होंने कहा कि “सेना के दम पर उठाए गए कदमों से कश्मीर के लोगों की मुश्किलें खत्म नहीं होंगी।” यह बयान भारत के अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले की ओर स्पष्ट इशारा था, जिसे पाकिस्तान हमेशा से “अवैध” और “एकतरफा” बताता आया है।
पाकिस्तान के इस बयान में एक तरह का नैतिक दावा भी नजर आया। शफकत ने भारत को चुनौती देते हुए कहा कि अगर कश्मीर पर कोई दावा करना ही है, तो भारत को पहले अपने “कब्जे” को छोड़ना चाहिए, न कि PoK पर उंगली उठानी चाहिए। यहाँ उनकी बात में वह पुराना तर्क दोहराया गया, जो पाकिस्तान लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाता रहा है—कि कश्मीर एक “विवादित क्षेत्र” है और इसका हल संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के जरिए जनमत संग्रह से ही संभव है।
जयशंकर के बयान ने पाकिस्तान को किया असहज
पाकिस्तान के इस बयान से साफ था कि जयशंकर की बात ने उसे असहज कर दिया था। जहां जयशंकर ने PoK को “चुराया हुआ हिस्सा” कहकर भारत के दावे को मजबूती से रखा, वहीं पाकिस्तान ने इसे अपनी संप्रभुता पर हमला माना। शफकत के शब्दों में वह गुस्सा और बेचैनी साफ झलक रही थी, जो इस बात से उपजी थी कि भारत ने वैश्विक मंच पर कश्मीर के नैरेटिव को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश की। यह प्रतिक्रिया न केवल जयशंकर के बयान का जवाब थी, बल्कि पाकिस्तान की उस कोशिश का हिस्सा भी थी, जिसमें वह कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिंदा रखना चाहता है।