‘स्टेटस ऑफ पुलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट 2025: पुलिस टॉर्चर और (अ) जवाबदेही’ में यह भी दावा किया गया है कि हिंदू पुलिसकर्मी इस धारणा को सबसे अधिक मानते हैं, जबकि सिख पुलिसकर्मियों में यह सोच सबसे कम पाई जाती है।
दिलचस्प बात यह है कि ‘कॉमन कॉज’ द्वारा लोकनीति, सीएसडीएस और लाल फैमिली फाउंडेशन के सहयोग से किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि हर पांच में से दो मुस्लिम पुलिसकर्मी भी मानते हैं कि मुस्लिम समुदाय के लोग अपराध करने की ‘प्रबल’ (18 प्रतिशत) या ‘कुछ हद तक’ (22 प्रतिशत) प्रवृत्ति रखते हैं। सर्वेक्षण में शामिल लगभग एक-तिहाई मुस्लिम और हिंदू पुलिसकर्मियों का यह भी मानना है कि ईसाई समुदाय के लोग भी अपराध करने की ‘प्रबल’ या ‘कुछ हद तक’ प्रवृत्ति रखते हैं।
यह सर्वेक्षण 16 राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी में 82 स्थानों, जैसे पुलिस स्टेशन, पुलिस लाइंस और अदालतों में विभिन्न रैंकों के 8,276 पुलिसकर्मियों पर किया गया था। भारत में पुलिस व्यवस्था की स्थिति को लेकर हालिया निष्कर्ष एक चिंताजनक तस्वीर प्रस्तुत करते हैं, जिसमें यातना को व्यापक रूप से उचित ठहराया जाता है और गिरफ्तारी प्रक्रियाओं का पालन बेहद कमजोर है। यह रिपोर्ट विशेषज्ञों के एक पैनल द्वारा जारी की गई थी, जिसमें ओडिशा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एस मुरलीधर, वकील और कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. अमर जेसानी और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी प्रकाश सिंह शामिल थे।