‘हम सभी भारत के निवासी हैं’
जस्टिस जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने कहा कि यहां राज्य या प्रांतीय डोमिसाइल जैसा कुछ नहीं है। केवल एक डोमिसाइल है। वह यह कि हम सभी भारत के निवासी हैं। पीठ ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत हर नागरिक को भारत के किसी भी हिस्से में निवास, व्यापार और पेशेवर कार्य करने का अधिकार है। यह अधिकार शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश के संदर्भ में भी लागू होता है। डोमिसाइल आधारित कोई भी प्रतिबंध पीजी स्तर पर इस मौलिक सिद्धांत को बाधित करता है।
‘आवास आधारित आरक्षण उच्च स्तर पर अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा’
कोर्ट ने माना कि कुछ हद तक डोमिसाइल आधारित आरक्षण अंडरग्रेजुएट (एमबीबीएस) प्रवेश में मान्य हो सकता है, लेकिन पीजी मेडिकल कोर्सेज में इसे लागू नहीं किया जा सकता। जस्टिस धूलिया ने कहा कि पीजी कोर्स में विशेषज्ञता और कौशल महत्त्वपूर्ण होते हैं। आवास आधारित आरक्षण उच्च स्तर पर संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा। हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय भविष्य के दाखिलों को प्रभावित करेगा, जो छात्र वर्तमान में पीजी कोर्स कर रहे हैं या जो पहले समाप्त कर चुके हैं, उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
यह है मामला
यह मामला 2019 में डॉ. तन्वी बेहल बनाम श्रेयी गोयल और अन्य के संदर्भ में सामने आया था। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पीजी मेडिकल एडमिशन में डोमिसाइल आरक्षण को असंवैधानिक घोषित किया था। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे बड़ी पीठ को सौंपा गया था।