क्या है शिमला समझौता?
शिमला समझौता, जो 2 जुलाई 1972 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तानी राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में हस्ताक्षरित हुआ था, दोनों देशों के बीच 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद शांति स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण कदम था। इस समझौते ने LoC को एक स्थायी सीमा के रूप में मान्यता दी और यह तय किया कि दोनों देश अपने विवादों, खासकर कश्मीर मुद्दे को, द्विपक्षीय बातचीत से हल करेंगे, बिना किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के साथ ही, दोनों पक्षों ने LoC का सम्मान करने और इसे एकतरफा रूप से बदलने की कोशिश न करने की प्रतिबद्धता जताई थी।
शिमला समझौते रद्द होने पर भारत को कैसे फायदा?
पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौते को रद्द करने का मतलब है कि अब LoC की पवित्रता खत्म हो गई है और दोनों देश इसे मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। इससे भारत को PoK में बड़ी कार्रवाई करने की खुली छूट मिल गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अब LoC के पार अधिक आक्रामक रणनीति अपना सकता है, जिसमें सैन्य कार्रवाई से लेकर PoK के लोगों के साथ सीधा संपर्क स्थापित करना शामिल हो सकता है। यह कदम भारत को PoK में अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका दे सकता है, जो 1947 से पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है, लेकिन भारत इसे अपना अभिन्न हिस्सा मानता है।
पाकिस्तान को फैसला पड़ सकता है भारी
शिमला समझौते से पीछे हटने का फैसला भारत के लिए रणनीतिक रूप से फायदेमंद साबित हो सकता है। इससे भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने की दिशा में मजबूत दलीलें मिलेंगी। साथ ही, LoC पर कड़ी कार्रवाई करने की वैधता भी भारत को मिल सकती है। दूसरी ओर, पाकिस्तान के लिए यह फैसला भारी पड़ सकता है। शिमला समझौते के निलंबन से पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों, जैसे संयुक्त राष्ट्र या इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC), पर ले जाने की कोशिश कर सकता है, लेकिन इससे उसकी वैश्विक छवि को और नुकसान होगा। पहले ही सिंधु जल संधि के निलंबन से पाकिस्तान में पानी का संकट गहराने की आशंका है, और अब शिमला समझौते को रद्द करने से उसकी कूटनीतिक अलगाव की स्थिति और गंभीर हो सकती है। इस घटनाक्रम से क्षेत्रीय तनाव बढ़ने की आशंका है, लेकिन भारत के लिए यह एक सुनहरा अवसर हो सकता है। PoK में बड़ा ऐक्शन करना अब भारत के लिए आसान हो गया है, और वह अपनी रणनीति को और आक्रामक बनाकर पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा सकता है। वहीं, पाकिस्तान का यह कदम उसे कूटनीतिक और रणनीतिक दोनों स्तरों पर नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे भारत को लंबे समय में बड़ा फायदा होने की संभावना है।