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‘निष्क्रिय शादी को बनाए रखने की बाध्यता से बढ़ जाती है मानसिक पीड़ा’, यहां पढ़िए तलाक के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ऐतिहासिक टिप्पणियां

सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के एक मामले में कहा कि जब पति-पत्नी एक छत के नीचे नहीं रहना चाहते, तो ऐसे मामलों में तलाक को मंजूरी दे देनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि खराब विवाह को जबरन चलाना मानसिक पीड़ा को बढ़ाता है, इसलिए तलाक देना ही बेहतर है

भारतJul 17, 2025 / 02:42 pm

Mukul Kumar

प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर

सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि जब कोई पति-पत्नी एक छत के नीचे किसी भी कीमत पर नहीं रहना चाहते तो ऐसे में मामलों में तलाक को मंजूरी दे देनी चाहिए। इसके साथ, शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि खराब विवाह को जबरन चलना, एक तरह की मानसिक पीड़ा को बढ़ाता है।

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दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पति ने तलाक का अनुरोध किया था। जबकि पत्नी इसका विरोध कर रही थी। दोनों पक्ष की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने तलाक की मंजूरी दे दी। यह शादी लगभग 16 सालों तक चली।
शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान पाया कि तलाक लेने वाले दंपत्ति शादी के एक साल बाद से ही अलग रह रहे हैं। यहां तक कि मध्यस्थता प्रक्रिया भी उनके मतभेदों को दूर करने में असफल रही। इसके बाद कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्ति का प्रयोग करते हुए तलाक की मंजूरी दे दी।
बता दें कि तलाक से जुड़ा यह पहला मामला नहीं है, जिसमें कोर्ट ने ऐतिहासिक टिप्पणी की। आज हम ऐसे चार और बड़े मामलों के बारे में बताने जा रहे हैं।

जासूसी तक पहुंचा रिश्ता तो पहले ही टूट चुका- कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पहले भी तलाक के मामले में बड़ा फैसला सुनाया था। कोर्ट ने तलाक के एक मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के निर्णय को बदल दिया था। तलाक के मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस बी। वी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि जब जासूसी तक रिश्ता पहुंच गया तो यह समझ लेना चाहिए कि वह पहले ही टूट चुका है।
कोर्ट ने कहा कि जानकारी के बिना गुप्त रूप से की गई कॉल रिकॉर्डिंग को भी तलाक के मामले सबूत माना जायेगा। कोर्ट ने इसके साथ कॉल रिकॉर्डिंग को आधार मानते हुए तलाक की मंजूरी दे दी।

इस मामले में भी कोर्ट ने किया था विशेषाधिकार का प्रयोग

इससे पहले तलाक के एक और मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विशेषाधिकार का प्रयोग किया था। इसी साल फरवरी महीने में शीर्ष अदालत ने एक शादी भंग कर दी थी। इसके साथ अपने फैसले में कहा कि शादी टूटने का मतलब यह नहीं कि जीवन खत्म हो गया। लड़की और लड़की अब एक नए जीवन की शुरुआत कर सकते हैं।
बता दें कि इस मामले में जोड़े की शादी साल 2020 में हुई थी। पति-पत्नी ने एकदूसरे के खिलाफ 17 केस दर्ज कराए थे। कोर्ट ने इस सभी मामलों को खत्म करते हुए तलाक को मंजूरी दे दी।

तलाक मामले में महिला के पक्ष में कोर्ट ने सुनाया था फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल अप्रैल में तलाक के मामले में सुनवाई करते हुए महिला के पक्ष में फैसला सुनाया था। दरअसल,एक महिला की शादी 24 सितंबर, 2002 को हुई थी। यह शादी इस्लामी रीतिरिवाज से हुई थी।
पति और पत्नी दोनों की यह शादी दूसरी थी। 2005 में पति की तरफ से काजी के कोर्ट में महिला से तलाक का केस फाइल किया गया। जिसे दोनों के बीच समझौते के बाद खारिज कर दिया गया।
इसके बाद पति ने 2008 में फिर से काजियात की अदालत में तलाक का केस दायर किया। उसी साल पत्नी भी फैमिली कोर्ट पहुंच। उसने एक याचिका दाखिल कर पति से गुजारा भत्ता दिलाने की मांग की, लेकिन फैमिली कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया। कहा गया कि दोनों की यह दूसरी शादी है और पत्नी अलग रहने के लिए खुद जिम्मेदार है।
फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ महिला इलाहाबाद हाईकोर्ट में पहुंच गई, लेकिन हाईकोर्ट ने भी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

इसके बाद, शीर्ष कोर्ट ने सभी फैसलों को पलटते हुए महिला के पक्ष में फैसला सुनाया। उसे 4 हजार रुपये मासिक भत्ता देने का आदेश दिया। इसके साथ, कोर्ट ने यह भी कहा कि शरीया कोर्ट द्वारा दिया गया तलाक अमान्य होगा।

पत्नी को 5 करोड़ रुपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2024 में भी एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। कोर्ट ने तलाक मामले में सुनवाई करते हुए शादी खत्म करने के एवज में पत्नी को एकमुश्त 5 करोड़ रुपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था।
दरअसल, इस मामले में पति-पत्नी शादी के बाद छह साल तक एकसाथ रहे थे। इसके बाद लगातार 20 साल अलग-अलग रहे। पति और पत्नी दोनों ने एक दूसरे पर क्रूर होने का आरोप लगाया था।
जिसके बाद कोर्ट ने माना कि इस मामले में विवाह का अर्थ, लगाव और नाता सबकुछ टूट चुका है। इसके बाद शर्तों पर अदालत ने तलाक को मंजूरी दे दी।

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