मिलिंद परांडे ने जवाब में कहा कि 60 करोड़ से अधिक हिंदुओं की भागीदारी वाला यह विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन है, और इसे ‘मृत्यु कुंभ’ जैसे शब्दों से अपमानित करना हिंदू-सनातन संस्कृति का अपमान है। वे इसे तुष्टीकरण और राजनीतिक स्वार्थ का परिणाम मानते हैं।
PM के आरोप को सही ठहराया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बागेश्वर धाम से विपक्ष पर हिंदू धर्म का मज़ाक उड़ाने के आरोप को वे सही ठहराते हैं। उनके अनुसार, भारत में कुछ शक्तियां और राजनीतिक दल हिंदुओं को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते। वहीं, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के मातृभाषा के प्रयोग पर सहमति जताते हुए वे इसे स्वाभाविक और जरूरी मानते हैं।
मोटापे पर पीएम के अभियान को सराहा
मोटापे पर पीएम के अभियान को भी वे सराहते हैं, इसे स्वास्थ्य जागरूकता के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए स्वच्छता अभियान की सफलता से जोड़ते हैं। मंदिरों के सरकारी नियंत्रण के मुद्दे पर उनका मानना है कि यह हिंदुओं के साथ भेदभाव है और मंदिरों का प्रबंधन हिंदुओं के हाथ में होना चाहिए। वक्फ बोर्ड को वे अनावश्यक मानते हैं और इसकी शक्ति को नियंत्रित करने के लिए कानून की वकालत करते हैं। महाराष्ट्र में धर्मांतरण और लव जिहाद पर कानून की बात पर वे दोनों को एक साथ जोड़कर कानून बनाने के पक्षधर हैं, इसे आवश्यक बताते हुए इसे एक ही समस्या की दो शाखाएं मानते हैं।