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मंदिरों के ट्रस्ट में मुसलमानों को रखेंगे? साफ-साफ बताइए- सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई ने सरकार से पूछा

सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि संपत्ति का प्रबंधन ऐसा काम है जिसका धर्म या संप्रदाय से कोई ताल्लुक नहीं है।

भारतApr 17, 2025 / 09:48 am

Vijay Kumar Jha

वक्फ कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में 17 अप्रैल को भी सुनवाई जारी रहेगी। इस दौरान कोर्ट का अंतरिम आदेश भी आ सकता है। 16 अप्रैल को हुई सुनवाई में कानून से जुड़े कई प्रावधानों पर जज ने सरकार से स्पष्टीकरण मांगा। गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड का सदस्य बनाने के प्रावधान पर भी जज ने टिप्पणी की। याचिकाकर्ताओं का पक्ष रख रहे कपिल सिब्बल ने कहा कि गैर मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में रखने का कानूनी प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है।
जस्टिस विश्वनाथन ने सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल (एसजी) से सवाल किया कि आप इस तर्क का क्या जवाब देंगे कि ‘जब हिंदुओं के धार्मिक ट्रस्ट की बात आती है, तो उसे हिंदू समुदाय ही संचालित करता है’?

सवाल- क्या हिंदू ट्रस्ट में मुस्लिमों को करेंगे शामिल?

इस पर एसजी मेहता ने जवाब दिया, ‘हिंदुओं के धार्मिक ट्रस्ट या दान के मामले में कानूनन निगरानी, नियंत्रण और समन्वय एक ऐसे निकाय द्वारा होता है, जिसमें हिंदू हो सकते हैं और नहीं भी हो सकते हैं। इस पर मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने मेहता से स्पष्ट रूप से पूछा, “क्या आप कह रहे हैं कि अब से आप हिंदुओं के ट्रस्ट या दान का प्रबंधन करने वाले बोर्ड में मुस्लिमों को शामिल करने की अनुमति देंगे? साफ-साफ बताइए।”
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जवाब- प्रबंधन और धार्मिक मामले अलग-अलग

इस पर मेहता ने तर्क दिया कि संपत्ति के प्रबंधन और धार्मिक मामलों से जुड़े मामलों के बीच फर्क करना होगा। संपत्ति का प्रबंधन ऐसा काम है जिसका धर्म या संप्रदाय से कोई ताल्लुक नहीं है। बोर्ड और वक्फ परिषद यह काम कर रहे हैं।’
मेहता ने यह भी कहा कि अगर गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने के प्रस्ताव पर आपत्ति स्वीकार की जाती है, तो “लॉर्डशिप इस मामले को नहीं सुन पाएंगे।”
सीजेआई खन्ना ने मेहता के तर्क पर कड़ा जवाब देते हुए कहा, “नहीं, मिस्टर मेहता, माफ कीजिएगा! हम सिर्फ न्यायिक निर्णयों की बात नहीं कर रहे। जब हम यहां बैठते हैं, तो हम किसी धर्म के नहीं होते हैं। हमारे लिए दोनों पक्ष एक समान हैं। लेकिन जब हम धार्मिक मामले देख रही एक परिषद की बात कर रहे हैं तो यह सवाल उठ सकता है। मान लीजिए कल को किसी हिंदू मंदिर में रिसीवर नियुक्त करना हो या मंदिर का कोई ट्रस्ट हो , उसकी गवर्निंग बॉडी के सभी सदस्य हिंदू हों…आप जजों से इसकी तुलना कैसे कर सकते हैं, जिन्हें अलग-अलग समुदायों या पृष्ठभूमि से होना चाहिए।” इसके जवाब में मेहता ने स्पष्ट किया कि उनकी बात केवल गैर-मुस्लिम वक्फ बोर्ड का हिस्सा नहीं बन सकते हैं, इस तर्क से सहमत होने के संदर्भ में थी।

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