scriptभीख मांगने, कूड़ा बीनने वालों की जिंदगी बदल रही हैं गुंजन बिष्ट, जानिए कैसे 295 बच्चों को भिक्षावृत्ति के दलदल से निकाला | Patrika News
राष्ट्रीय

भीख मांगने, कूड़ा बीनने वालों की जिंदगी बदल रही हैं गुंजन बिष्ट, जानिए कैसे 295 बच्चों को भिक्षावृत्ति के दलदल से निकाला

Freedom from Beggary: गुंजन बिष्ट अरोड़ा ने 295 बच्चों को भिक्षावृत्ति के दलदल से निकालकर शिक्षा में सहायता की जिनमे 180 बेटियां हैं।

भारतApr 21, 2025 / 09:45 am

Devika Chatraj

आठ साल पहले पांच साल उम्र की प्रीति (बदला हुआ नाम) हाथ में एल्युमिनियम के एक कटोरे को हिलाते हुए हल्द्वानी की गलियों में आते-जाते लोगों से भीख मांगा करती थी। अब वह चौदहवें वर्ष में है और नवीं कक्षा की छात्रा है। प्रीति के जीवन में यह बदलाव संभव हो पाया गुंजन बिष्ट अरोड़ा की कोशिशों से। इस शहर की गुंजन ऐसी दीपशिखा हैं, जिन्होंने भिक्षावृत्ति के अभिशाप में जकड़े 295 बच्चों के जीवन को शिक्षा के अमृत से सींचकर नई दिशा दी है। गलियों में कटोरा थामे भटकने वाले नन्हे हाथों में अब कलम और किताबें सज रही हैं। गुंजन ने पिछले सालों में जिन 295 बच्चों को भिक्षावृत्ति के दलदल से निकालकर शिक्षा का आलोक प्रदान किया उनमें 180 बेटियां हैं। इस वर्ष 30 विद्यार्थियों ने आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की और अब वे नवीं कक्षा में कदम रख चुके हैं। साथ ही, 30 से अधिक बच्चे पहली बार स्कूल की चौखट पर पहुंचे हैं। बच्चों को पढ़ते देख उनके माता-पिता खुश हैं।

संबंधित खबरें

अंधेरे से उजाले की ओर

गुंजन की यह यात्रा संकल्प से तपस्या और सिद्धि की है। मूलतः पिथौरागढ़ की रहने वाली गुंजन विवाह के पश्चात हल्द्वानी आईं तो यहां की गलियों में बड़ी संख्या में कटोरा थामे बच्चों को राहगीरों के समक्ष भीख के लिए गिड़गिड़ाते देखा। जिन मासूम बच्चों के कंधों पर किताबों का बस्ता होना चाहिए था, उनकी इस हालत ने उनके मन को कचोट दिया। उसी क्षण उनके मन में एक संकल्प ने जन्म लिया- इन बच्चों को अशिक्षा के अंधेरे से निकालकर शिक्षा के उजाले तक ले जाना।

माता-पिता शिक्षा के प्रति संशयी

गुंजन की चुनौती आसान न थी। पीढ़ियों से भिक्षावृत्ति में लिप्त परिवारों को उनके बच्चों के शिक्षित व स्वावलंबी बनाने का विश्वास दिलाना किसी हिमालयी चोटी को लांघने से कम न था। बच्चों के माता-पिता शिक्षा के प्रति संशयी थे, मगर गुंजन ने धीरे-धीरे अभिभावकों का विश्वास जीता। पहले कुछ परिवार तैयार हुए, फिर देखा-देखी अन्य भी जुड़ते गए। गुंजन ने बच्चों के आधार कार्ड और अन्य दस्तावेज तैयार करवाए और उन्हें सरकारी स्कूलों में प्रवेश दिलाया।

वीरांगना केंद्र: ज्ञान की नींव

गुंजन ने अपने घर में एक मंदिर बनाया, जिसे उन्होंने ‘वीरांगना केंद्र’ का नाम दिया। यहां वंचित बच्चों को पहले शिक्षा के प्रति प्रेरित किए जाता है। खेल, कहानियों और प्रोत्साहन के माध्यम से उनके मन में पढ़ाई के प्रति रुचि जागृत की जाती है। साथ ही माता-पिता और परिवार की काउंसिलिंग भी की जाती है। इसके बाद बच्चों का स्कूल में दाखिला करवाया जाता है।

स्वयं की कमाई, बच्चों पर लगाई

नैनीताल को-ऑपरेटिव बैंक में कैशियर के रूप में कार्यरत गुंजन अपनी आय का 50 प्रतिशत इन बच्चों पर खर्च करती हैं। स्कूल की मुफ्त शिक्षा के अतिरिक्त, बच्चों की स्टेशनरी और अन्य जरूरतों का खर्च वे स्वयं वहन करती हैं। उनकी इस निःस्वार्थ सेवा को देखकर कुछ सामाजिक संगठन भी सहायता के लिए आगे आए हैं, जिससे यह मिशन और सशक्त हुआ है।

Hindi News / National News / भीख मांगने, कूड़ा बीनने वालों की जिंदगी बदल रही हैं गुंजन बिष्ट, जानिए कैसे 295 बच्चों को भिक्षावृत्ति के दलदल से निकाला

ट्रेंडिंग वीडियो