2050 तक चाहिए 2.4 ट्रिलियन डॉलर का निवेश
वर्ल्ड बैंक के कंट्री डायरेक्टर ऑगस्ट टानो कौमे ने कहा कि जलवायु संकट से निपटने और जलवायु रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए भारतीय शहरों को 2050 तक 2.4 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की जरूरत होगी। उन्होंने कहा, शहरों को जलवायु संकट से लड़ने के लिए निवेश और निर्णय लेने की आजादी (autonomy) दी जानी चाहिए। कई राज्यों ने 74वें संविधान संशोधन को पूरी तरह लागू नहीं किया है, जबकि जहां शहरों को निर्णय लेने की शक्ति दी गई, उन्होंने बेहतर प्रदर्शन किया है।
क्यों बढ़ रहा है बाढ़ और गर्मी का खतरा
रिपोर्ट की सह-लेखिका अस्मिता तिवारी ने कहा कि शहर बाढ़ के अधिक संवेदनशील क्षेत्रों में फैल रहे हैं और कंक्रीट pavings तथा इमारतों के कारण जमीन में वर्षा जल के रिसाव की क्षमता कम हो रही है। इससे pluvial flood (बरसाती बाढ़) का खतरा बढ़ गया है। रिपोर्ट के अनुसार, 2070 तक अगर अनुकूलन उपाय नहीं किए गए तो हर साल बाढ़ से 30 अरब डॉलर तक का नुकसान हो सकता है। 1983-1990 से 2010-2016 के बीच, भारत के 10 बड़े शहरों में खतरनाक गर्मी की स्थिति में 71% की वृद्धि दर्ज की गई है। शहरी हीट आइलैंड इफेक्ट (Urban Heat Island Effect) के कारण रात में भी गर्मी बढ़ जाती है, क्योंकि कंक्रीट की सड़कें और इमारतें गर्मी को रात में छोड़ती हैं।
हीटवेव से दोगुनी हो सकती हैं मौतें
रिपोर्ट में बताया गया है कि 2050 तक हीटवेव और हीट आइलैंड इफेक्ट के कारण सालाना मौतों की संख्या 3 लाख तक पहुंच सकती है। हालांकि, शहरी हरियाली (urban greening), कूल रूफ, समय पर चेतावनी प्रणाली और काम के घंटे बदलकर सुबह और शाम करने जैसे उपायों से 1.3 लाख जानें बचाई जा सकती हैं। निवेश और नीति सुधार की जरूरत
रिपोर्ट में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई सिफारिशें दी गई हैं:
- प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी बढ़ाना
- वित्तीय रोडमैप बनाना और फंडिंग स्रोत बढ़ाना
- नगरपालिका क्षमता निर्माण के लिए मानक तय करना
- जोखिम आकलन और पूंजी जुटाना
- फ्लड रेजिलिएंस के लिए अगले 15 साल में 60% हाई-रिस्क शहरों को कवर करने हेतु 150 अरब डॉलर निवेश करना
क्यों जरूरी है शहरों को ऑटोनॉमी देना
कौमे ने कहा कि जहां राज्यों ने शहरों को निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी, उन्होंने संसाधन जुटाने, राजस्व बढ़ाने और संपत्तियों का सही उपयोग करने में सफलता पाई। 74वां संविधान संशोधन (1992) शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा देता है, लेकिन 2022 की ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया कि कई राज्यों ने इसे पूरी तरह लागू नहीं किया। वर्ल्ड बैंक का मानना है कि जलवायु संकट से निपटने के लिए भारत के शहरों में निर्णय लेने की क्षमता और स्वतंत्रता बढ़ाना बेहद जरूरी है।